हनुमान - सीता संवाद

हनुमान - सीता संवाद

डॉ राकेश कुमार आर्य
सीता जी के साथ संवाद करते हुए हनुमान जी ने उन्हें पूर्ण विश्वास दिला दिया कि वह कोई मायावी मनुष्य नहीं हैं अपितु श्री राम जी के दूत के रूप में उनके समक्ष उपस्थित हैं। सीता जी को जब यह विश्वास हो गया कि हनुमान जी रामचंद्र जी के द्वारा ही भेजे गए हैं तो उन्हें अब इस बात का भी विश्वास हो गया कि अब निर्धारित समय से पहले ही श्री राम उन्हें यहां से ले जाएंगे। ऐसा विश्वास होने पर सीता जी हनुमान जी से अपने मन की बात कहने लगीं। तब हनुमान जी ने उनसे कहा कि आप चाहें तो मेरे साथ भी चल सकती हैं। पर सती सीता ने अपने पतिव्रत धर्म का निर्वाह करते हुए हनुमान जी से कह दिया कि वे परपुरुष को छूना भी उचित नहीं मानती हैं। यद्यपि वह जानती हैं कि आपका चरित्र बहुत पवित्र है। सीता जी ने कहा कि यदि मैं आपका प्रस्ताव मान भी लूं तो जैसे ही राक्षसों को मेरे यहां से जाने की सूचना मिलेगी तो वे आपका पीछा करेंगे। तब ऐसा भी संभव है कि मैं मारे डर के समुद्र में ही गिर जाऊं। यदि मैं आपके साथ चलती हुई समुद्र में गिर गई तो भी अनिष्ट हो जाएगा। इस समय सीता जी ने जो कुछ भी कहा, वह बहुत ही उचित था। जो सीता एक बार रावण के साथ लंका चली गई वही अब लंका से फिर एक अपरिचित व्यक्ति हनुमान के साथ अपने पति के पास लौट आए , इस प्रकार परपुरुषों के साथ दौड़ते भागते रहने से सीता सीता नहीं रहतीं। सीता जी के पवित्र शब्दों को सुनकर हनुमान जी को भी संकोच हुआ। उन्होंने भी सोचा कि उन्होंने चाहे कितने ही पवित्र हृदय से यह शब्द कहे , पर उन्हें भी ऐसा नहीं कहना चाहिए था।




सीता जी बतला रहीं , बात सुनो हनुमान।
वीरता और कृतज्ञता , गुण रखते श्री राम।।


परम नियंता ईश्वर , रखें भक्तों की लाज।
वैसे ही श्री राम जी, करें सबका सम्मान।।


परमपिता परमात्मा , सुनें भक्तों की टेक।
वैसे ही मेरे राम जी, अरदास सुनें हर एक।।


अंतर - मन मेरा कह रहा , मिलेंगे मेरे राम।
समय निकट वह आ गया, कृपा करें भगवान।।


हनुमान जी कहने लगे , तुम चलो हमारे साथ।
दंडित करूं लंकेश को, जिसने किया अपराध।।


सीता जी कहने लगीं , हृदय तुम्हारा नेक।
चरित्र पवित्र है आपका, चिंतन भी है नेक।।


साथ तुम्हारे मैं नहीं, जा सकती हनुमान।
मत संकट में डालिए, तुम भी अपने प्राण।।


हनुमत बोले - जानकी ! मुझे पूछेंगे श्री राम।
सीता जी तुमको मिलीं - क्या इसका प्रमाण।।


कोई निशानी दीजिए , खुश होवें श्री राम।
तात लक्ष्मण हों मगन , सत्य वचन मेरे जान।।


चूड़ामणि को दे दिया, एक निशानी जान।
दशरथ नंदन से कहो, प्रणाम मेरा हनुमान।।




( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )
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