उम्मीद शीशे की तरह होती है
उम्मीद होती है काॅंच की तरह ,पल भर में टूट बिखर जाती है ।
लगा दें जो हम तार की जाली ,
तो सुंदरता भी निखर जाती है ।।
जीवन तो होता धरा पे महल ,
उम्मीद ये महल की खिड़की है ।
पूरे हुए तो सुंदर है ये खिड़की ,
अन्यथा खिड़की न झिड़की है ।।
बहुत उम्मीद से करते उम्मीद ,
उम्मीद शीशे की तरह होती है ।
नहीं लगा दृढ़ कर्म रूपी जाली ,
शीशे तरह अस्तित्व खोती है ।।
कर्म रूपी जाली देता है सुरक्षा ,
उम्मीद रूपी सपने संजोती है ।
बिन कर्म उम्मीद खाली शीशी ,
अपनी आपका भी डूबोती है ।।
कर्म हमारे यदि हो जाते दृढ़ ,
तो जीवन की सुंदर ज्योति है ।
दृढ़ कर्म हमारे भाग्य जगाते ,
कर्म भाग्य मेरे हीरा मोती हैं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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