हैवानियत की तो हद हो गई ,
इंसानियत अब तो रहा कहाॅं ।नारी शक्ति आज तड़प रही है ,
मासूमियत भी अब रहा कहाॅं ।।
दुराचार बढ़ता जा रहा है अब ,
सरकार का है वह तंत्र कहाॅं ।
दुराचार यह कम भी हो जाए ,
ऐसा उपलब्ध वह मंत्र कहाॅं ।।
सजा तो यह अलगाव सबसे ,
जेल में रहकर भी ये जीना है ।
अलग हुए घर गाॅंव समाज से ,
जेल में ही रह खाना पीना है ।।
कानून ऐसा ही यहाॅं चाहिए ,
अपराध दुराचार हो जाए बंद ।
हर माॅं बहन रहें निर्भय होकर ,
खूब घूमें फिरें होकर स्वछंद ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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