बतलैलक हे हमरा(मगही कविता)

बतलैलक हे हमरा(मगही कविता)

--:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र 'अणु'
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बतलैलक हे हमरा
ई हम्मर घर-परिवार
कि मगह के माटी पर
लेलन हे भगवान अवतार
बिन गाछ के पहाड़
आऊ नदी बिना पानी के
हमरा आजो इयाद हे
बतिया ई अपन नानी के
देवतन के उपर
रक्षसवन के अतियाचार
जेतना सब मर के
भे गेलन परेत
उनकरो मोक्ष दे हे
ई फल्गु के रेत
विष्णुपद मंदिर
हे पितरन के सरग द्वार
बताव हे इतिहास एकरा
हे ई किकट परदेश
जनमलन बुद्ध देलन उपदेश
मिलल हल ग्यान जिनका
निरंजना के कछार
अबहियों गवाह हे उ
पीपर के डार
वेद आऊ पुराण गावे
मगह के गाथा
सुन -जान-देख के सब
झुकावत हथ माथा
होव हे पिंडदान पितरन के उद्धार
नयका इतिहास एकरो गुन गावहे,
अरब तक शासन हल ऐहू बताव हे
समय के साथ भले
ही आज हम लाचार
कहेला तो मगह में पितरीपक्ष प्रधान हे
मंगलागौरी नाम के एक मातरी स्थान हे
रोज जहां होव हे
मईया के जयकार
बैतरनी,बिसार,रामसागर के घाट
धर्मशिला,प्रेतशिला,रामशिला पाट
वियोगी,बौधिया पंडा सिजुआर
----------------------------------------वलिदाद अरवल (बिहार)८०४४०२.
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