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भारत की माताएं

भारत की माताएं

भारत की माताओं को कम न समझो
दिया जन्म इन्होंने परब्रह्म भी को।
भारत की माताओं को कम न समझो
इन्होंने पाला जगत जननी भी को।
कभी राम तो कभी कृष्ण जी को
सीता कभी राधिका रुक्मिणी को
कौशल्या यही देवकी और यशोदा
अयोध्या यहीं गोकुल मथुरा यहीं तो
भारत की माताओं को कम न समझो।१
अवतार लेते हैं परमात्मा भी
पावन बहुत है भारत यही तो
यही देवि सीता यही देवि राधा
संध्या सावित्री गायत्री यही तो
भारत की माताओं को कम न समझो।२
देवों की माता अदिति भी यहीं थी
दिति दानवों की भी माता यहीं थी
रखा गर्भ में अपने जिसने सभी को
भारत की माताओं को कम न समझो।३
भले तत्व जड है प्रकृति किन्तु सुन लो
बिना इनके चेतन भी निरुपाय ही है
बिना इनके शिव भी शव मात्र ही हैं
व्यंजन के संग स्वर भी रहतीं यही तो
भारत की माताओं को कम न समझो।४
जब हार जाते हैं सब देवता तो
करतीं हैं वो काम दूर्गा यही तो
यही पार्वती हैं यही देवि लक्ष्मी
ब्रह्मा के संग ब्रह्माणी यही तो
भारत की माताओं को कम न समझो।५
राजा बड़े हों महाराजा बड़े हों
ऋषि बड़े या महर्षि बड़े हों
ज्ञानी बड़े महाज्ञानी बड़े हों
बड़े संत साधु सन्यासी बड़े हों
संसारी हों या बड़े कोई त्यागी
रागी बड़े या कोई भी वैरागी
योद्धा बड़े महायोद्धा बड़े हों
श्रेष्ठी बड़े महाश्रेष्ठी बड़े हों
सेवक या स्वामी जगत के भले हों
किसी मां ने ही जन्म दी हर किसी को
भारत की माताओं को कम न समझो।६
जरुरत पड़ी तो ये बन जाएं काली
भूवनेश्वरी भैरवी देवि बगला
यही षोडशी तारा देवी ये कमला
मातंगी धूमावती क्षिन्नमस्ता
समय के अनुसार ढलती यही तो
भारत की माताओं को कम न समझो।७
चौंसठ योगिनी रुप धरती यही हैं
सभी के घरों में भी रहती यही हैं
घर में सजाए जो भोजन की थाली
श्रृंगार जिसने है सोलह सजाली
ममतामई रुप जिसने बना ली
हाथों में तलवार लेकर इसी ने
समर क्षेत्र में लक्ष्मीबाई कहा ली
सहयोगिनी है पिता की परन्तु
अकेले भी इसको तु अबला न समझो।
भारत की माताओं को कम न समझो।८
-सुशील कुमार मिश्र
-स्वरचित रचना
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