प्रकृति के सौंदर्य का कायल हुआ हूँ।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
प्रकृति के सौंदर्य का कायल हुआ हूँ।
प्रेममय उस छुअन से घायल हुआ हूँ।।
लताओं को छेड़ता चलता पवन क्यों?
दृष्टि के सौविध्य का काजल हुआ हूँ। ।
निर्मला जल -लहरियों में मन तरंगित है।
स्नेह -रस - माधुर्य का पागल हुआ हूँ।।
सान्ध्य ऋतु अमिसार का है पथ अकंटक।
गीतमय अभिव्यक्ति का मादल हुआ हूँ।।
हेरती ग्राम्या जिसे अवगुंठनों में छिप।
सरस भावों से भरा बादल हुआ हूँ।।
सघन वन घनश्याम सम्मुख मोर सा नर्तन।
विवश मन से पाँव का छागल हुआ हूँ ।।
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