डर

डर

किसी भी प्राणी का जन्म एक प्राकृतिक लिबास में ही होता है , किंतु मानव उस प्राकृतिक लिबास को‌ हटाकर अपना मानव निर्मित वस्त्र पहना देता है । जबकि उस नन्हें शिशु को वस्त्र पहनाओ , रजाई ओढ़ाओ या नंगे रख दो , उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है । वैसे ही उस नन्हें के पास कोई मानव रहे या न रहे या कोई विषैला अजगर ही फन फैलाए खड़ा हो , उस नन्हें शिशु को कहीं कोई फर्क नहीं पड़ता है । शिशु के मस्तिष्क में लगभग डेढ़ वर्ष तक तो बिल्कुल भय व्याप्त नहीं होता । यह उम्र ऐसा होता है कि यदि विषैला साॅंप भी आ जाए तो उसे पकड़ते देर नहीं होती । इसके बाद रोते बच्चे को चुप कराने के लिए डर समाहित कराया जाता है , किंतु यह डर भी तभी तक होता है , जब उसे डराया जाता है । अर्थात किसी भी प्राणी का जन्म भय और लज्जा से रहित ही होता है । किंतु जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे भय और लज्जा का रूप परिवर्तित होने लगता है तथा लोभ क्रोध , ईर्ष्या का समावेश होने लगता है । मानव जब पूर्णतः होशोहवास में जब आने लगता है तो हर जगह भय दिखने लगता है , किंतु वैसी हालत में वह साहस भी संग्रह करने लग जाता है ।
भय एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग कहीं सार्थक भी होता है , तो कहीं निरर्थक भी होता है । कहीं कोई नेक काम हम करने जा रहे हैं और पहले ही डर गए कि यह काम हो पाएगा या नहीं या किसी अभाव के कारण अधूरा ही रह जाएगा । वैसे जगह यदि हम सहम गए तो वाकई या तो काम बिगड़ जाता है या किन्हीं कारणवश अधूरा रह जाता है ।
मानव तन में भय का‌ होना नितांत आवश्यक है ,‌किंतु कहाॅं ? सर्वत्र नहीं , कुछ जगहों पर । जैसे भय बनाया गया है ताकि आप गलत काम करने से भयभीत हों ।
हमारे स्वतंत्रता सेनानी अंग्रेजों से युद्ध किए , भयभीत होने के लिए नहीं , बल्कि बिल्कुल निर्भय होकर जीने के लिए । आज भी आजादी है किस कार्य के लिए ? नेक कर्म करने के लिए बिना किसी बंधन के जीवन जीने के लिए । गलत कार्यों के लिए आज भी आजादी नहीं है । इसके लिए सरकार तो क्या , गलत कार्यों के लिए ईश्वर भी आजादी नहीं दिया है । हाॅं , आजादी नहीं दिया है , किंतु हम गुलाम भी नहीं हैं किसी के । यदि हम गुलाम हैं भी तो सिर्फ अपनी आचरण और संस्कृति के गुलाम के गुलाम हैं , समय का गुलाम हैं । अतः भय बनाया गया है ताकि हम कर्मों से बच सकें ।
गलत कर्मों से तू शर्म कर ,
गलत कर्मों से ही तू डर ।
अपना कर्म तू निभाए जा ,
अधिकार हेतु बेशक लड़ ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ