आजादी का बहादुर सिपाही

आजादी का बहादुर सिपाही ,

जिसका चरम पर जोश था ।
जीवन को जो जीवन न समझा ,
वह नेता सुभाषचंद्र बोस था ।।
वतन को दिया है निज जवानी ,
आजादी ही मूल उद्घोष था ।
गर्म लोहे पर ही हथौड़े मारना ,
क्या यही उसका बड़ा दोष था ?
नेता सुभाषचंद्र नाम से नहीं ,
साहस जुनून का भी बोस था ।
बातों से भौंहें ये टेढ़ी देखकर ,
बोस को आया बहुत रोष था ।।
उखाड़ फेंका गोरों को हिला कर ,
जिनमें साहस का बड़ा कोष था ।
उसके विपरीत समझौता किया ,
ये कैसा गाॅंधीजी का ओस था ।।
अपने नेता अपनों से छिपना ,
मन का कैसा बुरा यह पोष है ।
आजीवन छुप जीवन बिताया ,
इसका आज बड़ा अफसोस है ।।
कोटि कोटि नमन तुम्हें हमारा ,
आजादी रूपी दिया ज्योत है ।
आज पुनः तुम्हारी राष्ट्र जरूरत ,
राष्ट्र करुण भाव में ओतप्रोत है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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