अदृश्य अहसास
हवा सा बहता, फिर भी छू जाता,मन में घर करता, फिर भी दूर रहता।
नज़र नहीं आता, फिर भी हर जगह,
अहसास हूं मैं, हर पल, हर सांस में।
खुशबू सा बिखरता, मन को मोह लेता,
धड़कन बन कर, तुझे सहलाता।
वजूद पर छा जाता, अँधेरे में जगमगाता,
तुझे ढूँढता हूं, हर पल, हर जगह।
मन में बसकर, करता हूं तुझे मुग्ध,
छू जाता हूं, सहलाता हूं तुझे।
तुझे ढूँढता हूं, हर पल, हर जगह,
अदृश्य अहसास, फिर भी रहता साथ।
तुझमें ही खो जाता, तुझसे ही मिलता,
अनंत का सागर, जिसमें डूब जाता।
एक रहस्य हूं, एक सपना, एक अंजान राह,
तू ही मेरी मंजिल, तू ही मेरा सहारा।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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