डा ओम् प्रकाश पाण्डेय ने अपनी पुस्तकों से 'राष्ट्र-धर्म' की शिक्षा दी है : अश्विनी चौबे
- कवि और नाटककार डा ओम् प्रकाश पाण्डेय की दो अंग्रेज़ी पुस्तकों का हुआ लोकार्पण, आहूत हुआ कवि-सम्मेलन।
पटना, १७ अगस्त। आज राष्ट्रधर्म का पालन नही हो रहा है। नैतिकता का अभाव हो गया है। नीति पर ही राजनीति चलती है। तभी 'राम राज्य' की परिकल्पना को मूर्तरूप दिया जा सकता है। सुविख्यात कवि डा ओम् प्रकाश पाण्डेय ने अपनी पुस्तकों के माध्यम से 'राष्ट्रधर्म' की शिक्षा दी है। इनकी कविताएँ प्रेरणादायी हैं।
यह बातें शनिवार को साहित्य सम्मेलन में हिन्दी और अंग्रेज़ी के चर्चित कवि और गद्यकार डा ओम् प्रकाश पाण्डेय की दो अंग्रेज़ी पुस्तकों 'द गोल्डेन डियर' और 'फ़स्ट ट्वेंटी और ट्वेंटी फ़स्ट' का लोकार्पण करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कही। उन्होंने कहा कि इस देश का दुर्भाग्य है कि आज जब हम 'नेशन फ़स्ट' की बात करते हैं, लोग यह सोचते हैं कि पहले वह स्वयं फ़स्ट कैसे हो जाएं, चाहे नेशन जाए भांड़ में। हम सबको दृष्टि बदलनी होगी।
समारोह के मुख्यअतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि मनुष्यता के लिए नैतिकता सबसे बड़ी चीज़ है। जब नैतिक-ह्रास होता है तो हमारा पतन होता है। लोकार्पित पुस्तक इसी बात पर बल देती है कि हमें नैतिक दृष्टि से ऊपर उठाना चाहिए।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि लोकार्पित पुस्तकों के रचनाकार डा ओम् प्रकाश पाण्डेय सूक्ष्म-दृष्टि रखने वाले अध्ययनशील कवि-लेखक हैं। प्राच्य अवधारणाओं से इनका कोई विरोध नहीं, परंतु स्थापित मान्यताओं में कुछ नवीनता की खोज इनकी प्रवृत्ति में है। अंग्रेज़ी भाषा में लिखा गया डा पाण्डेय का यह नाटक 'द गोल्डेन डियर', रामायण के उस प्रसंग पर केंद्रित है, जिसमें सीता 'स्वर्ण-मृग' पर मोहित होकर, उसे ला देने के लिए श्री राम को प्रेरित करती हैं, और छल का शिकार होती हैं। इस नाटक में लेखक ने 'रावण' को एक दूसरी ही दृष्टि से देखा है, जो पुरानी अवधारणा को तोड़ती हुई प्रतीत होती है। उनकी दूसरी पुस्तक 'फ़स्ट ट्वेंटी ऑफ ट्वेंटी फ़स्ट' , २१वीं सदी के प्रथम बीस वर्षों में लिखी गयी अंग्रेज़ी कविताओं का संकलन है। इसके नाम के अनुसार ही ये कविताएँ इस सदी की प्रवृत्तियों को रेखांकित करती हैं।
डा सुलभ ने कहा कि डा पाण्डेय संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेज़ी विषयों के परास्नातक उपाधि प्राप्त विद्वान हैं और काव्य-प्रतिभा से सुसंपन्न भी। उनसे अपेक्षा की जाती है कि अपनी प्रतिभा का उपयोग 'हिन्दी' की सेवा में करें।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ लेखक जियालाल आर्य, डा शंकर प्रसाद, पूर्व वन अधिकारी रामचंद्र पाण्डेय, डा ध्रुव कुमार, पूर्व प्राचार्या सरिता ओझा, ललिता पाण्डेय आदि ने भी अपने उद्गार में लेखक के प्रति शुभकामनाएँ व्यक्त की।
इस अवसर पर एक पुलकन कारी कवि-सम्मेलन का आयोजन भी किया गया, जिसमें वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, दिनेश्वर लाल दिव्यांशु, अर्जुन कुमार गुप्त, डा अर्चना त्रिपाठी, नीता सहाय, सुनीता रंजन, आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी मुग्धकारी रचनाओं से श्रोताओं का हृदय जीत लिया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रो सुशील कुमार झा ने किया।वरिष्ठ लेखक डा शशि भूषण सिंह, सरिता चौबे, कलाधर ओझा, डा कुंदन कुमार, सुमित्रा देवी, रविकान्त ओझा, भास्कर त्रिपाठी आदि प्रबुद्धजन समारोह में उपस्थित थे।
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