स्वतंत्रता और एकता

स्वतंत्रता और एकता

स्वतंत्रता एकता एक दूजे के पूरक ,
एक‌ दूजे बिन दोनों के नहीं अर्थ हैं ।
एक दूजे बिन होते दोनों ही अधूरे ,
दोनों ही एक दूजे बिन होते व्यर्थ हैं ।।
संभव कहाॅं है एकता बिन स्वतंत्रता ,
एकता स्वतंत्रता का ही होता भान है ।
एकता में होती‌ है ऐसी ही एक शक्ति ,
संघर्ष करके जीत लेता वह जहान है ।।
जैसे धन है मद लोभ अहं यह देता ,
वैसे देती स्वतंत्रता आलस व घमंड ।
मोड़ लेता मुॅंह मानव मूल सड़कों से ,
चुपके पकड़ता गलियारा मार्ग पगडंड ।।
नतीजा पुनः गहराता है यह संकट ,
स्वतंत्रता पुनः यह चरमरा जाती है ।
जयचंद मानसिंह जैसों के ही कारण ,
परतंत्रता पुनः असर दिखा जाती है ।।
परतंत्रता झाॅंक नहीं सकती कदापि ,
जबतक गुणगान है तिरंगा महिमा की ।
जयचंद मानसिंह भी फींके ही रहेंगे ,
जबतक याद रहे शहीदों की गरिमा की ।।
आओ मिलजुल हमसब एक हो जाऍं ,
तन मन से मिलकर बहादुरी दिखाऍं ।
दुश्मनों के सिर उठाने से भी पहले ,
जयचंद मानसिंह को देश से भगाऍं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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