नारी समझे नारीत्व को
नारी समझे स्व नारीत्व को ,नारीत्व होता जिनका मूल ।
नर का फिर यह दोष क्या ,
जब नारी जाए नारीत्व भूल ।।
रावण तो हर युग में रहा है ,
निज संग बचाना स्व कुल ।
कुम्हलाने से प्रतिष्ठा बचाना ,
प्रतिष्ठा होती सुगंधित फूल ।।
नारी आज है कमजोर नहीं ,
नारी स्वयं आदिशक्ति त्रिशूल ।
नर भी सारे साथ हैं उनके ,
नारी बना ले अपना उसूल ।।
नारी प्रतिष्ठा फूल सा कोमल ,
नारी प्रतिष्ठा ही पकड़ता तूल ।
अपनी प्रतिष्ठा स्वयं संभालो ,
अन्यथा प्रतिष्ठा मिलता धूल ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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