समाज से ही आते हैं संघ प्रचारक

समाज से ही आते हैं संघ प्रचारक

:- प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
कुशिक्षा के कारण जो बातें सर्वज्ञात थी और सर्व सामान्य थी, वह भी लोग याद नहीं रखते।
मूल है समाज, समाज का परिवेश, समाज की मान्यताएं, समाज के व्यवहार की आस्थाएं और मर्यादाएं।
15 अगस्त 1947 तक कई प्रकार के विकार के बावजूद समाज की प्राचीन मान्यताएं और परंपराएं प्रवाहित थे, वर्ण और आश्रम की स्मृतियां और संस्कार तथा व्यवहार भी बड़ी सीमा तक सुरक्षित थे।
ब्राह्मणों का आदर्श प्रसिद्ध था ।भले ही 20 से 25% ब्राह्मण भ्रष्टाचार कदाचार में भी रत रहते थे परंतु शेष के जीवन में सदाचार का ही प्रयास रहता था,वह बड़ा हिस्सा तपस्वी जैसा जीवन ही जीने को अपना पुरुषार्थ मानता था। अपना चारित्रिक ऐश्वर्य मानता था।
क्षत्रियों को इस बात का गर्व था कि वह बात के पक्के हैं ,किसी के सामने झुकते नहीं तथा पीड़ित की रक्षा करने में अपनी शान मानते थे।
महाजनों को गर्व था कि वे धर्म के लिए दान देते हैं ,मंदिरों के लिए दान देते हैं ब्राह्मणों को दान देते हैं ,धर्म संस्थाओं का संचालन करते हैं और अपनी आय का अच्छा खासा अंश धर्म कार्य में लगाते हैं।
चतुर्थ वर्ण के लोगों को भी ध्यान था कि वह सत्य निष्ठ है ,निष्ठावान है, परिश्रामपूर्वक कार्य करते हैं और उनके समाज में भी एक से एक तपस्वी सदाचारी श्रेष्ठ तथा धनी लोग भी हुए हैं और अगर कोई हमें नीचे देखता है तो वह स्वयं नीच ही है।
सभी जानते हैं कि गांधी जी उस समय जो जो बातें कह रहे थे ,वह समाज में सर्वमान्य आदर्श थे :-सत्य अहिंसा सदाचार ,अचौर्य, संयम, अपरिग्रह आदि सर्वमान्य लक्ष्य थे ।
गांधी जी ने उनका पहली बार प्रचार नहीं किया जैसा कुछ मुर्ख लोग बताते हैं
गांधी जी ने उनकी चर्चा की।
समाज में उनकी चर्चा पहले से व्याप्त थी ,गांधी जी को उनकी चर्चा से मान्यता मिली।
गांधी जी ने उसमें कुछ विकृतियां तो पैदा की ,परंतु उनको बढ़ाने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
इस बात को भूलकर गांधी जी को एक अपवाद की तरह देखने बताने का काम आधुनिक राजनीति ने किया। क्योंकि उसके अनुयाई यूरोईसाई राजनीति से प्रभावित और सब प्रकार के कदाचार तथा भ्रष्टाचार को सहज स्वाभाविक मानने वाले मामूली लोग थे।
ईसाई पादरियों के बौद्धिक चेले हैं आधुनिक राजनेता।
इन्होंने 1947 के बाद देश से हिंदू समाज और हिंदू धर्म की मान्यताओं को अप्रतिष्ठित कर दिया ।उनको सीधे नष्ट नहीं किया। उनका सम्मान समाप्त कर दिया और उनकी शिक्षा समाप्त कर दी और उन्हें नीची नजरों से देखने का प्रचार किया।जवाहरलाल नेहरू जैसे लोग ।
इसलिए उन्होंने गांधी जी को अपवाद कहा।
यही बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन प्रचारकों के लिए है।
वे सब समाज के अत्यंत प्राचीन काल से चले आ रहे सज्जनों वाले स्वभाव के थे ।समाज में अनेक धनियॉ से लेकर गरीबों तक सभी परिवारों में ऐसे लोग भरे पड़े थे जो अपरिग्रही मितव्यई शांत सदाचारी उदार करुणा मय तथा लोक के लिए कष्ट उठाकर भी कार्य करने वाले थे।
इस प्रकार संघ के प्रचारक समाज के उन अन्य समाज में मान्य और श्रद्धा प्राप्त लोगों की तरह ही थे।
यह बात अब बहुत से लोग भूल गए क्योंकि जो लोग भूल गए हैं वे उन्हें केवल संघ की विशेषता जानते हैं समाज की यह विशेषता थी ,यह उन्हें याद नहीं ।
इस प्रकार यूरोईसाई बुद्धि का प्रसार व्यापक है ।
हर संगठन अपने समाज के उन लोगों को अति विशिष्ट मानता है ,जैसे लोग इसी हिंदू समाज के सभी समुदायों में बड़ी मात्रा में सम्मानित और पूज्य हैं तथा बड़ी संख्या में है।
अब यह हो रहा है कि केवल अपनी विशेषता बताइए और प्राय वह विशेषता या तो कोई विकृति होती है या बहुत मामूली होती है ।उस विशेषता को बात कर संपूर्ण समाज को अपने नियंत्रण में रखने की लालसा बलवती हो गई है।
इसीलिए अब हर संगठन के ऐसे लोगों के प्रति आन्तरिक सम्मान बहुत घट गया है और उनसे हम क्या काम ले सकते हैं अगर वह सत्ता के पास है तो हमारा क्या-क्या काम कर सकते हैं यह दृष्टि प्रधान हो गई है।
परिणाम यह है कि भविष्य में जो लोग प्रचारक बनकर निकलेंगे वह अभी के लालसाओं से भरे युवाओं जैसे ही होने लगेंगे।
समाज का महत्व भुलाकर केवल अपने संगठन का महत्व या समाज का महत्व भुलाकर गांधी जी की तरह व्यक्ति का महत्व बताने से अनिष्ट होता है ,यह बात जाननी चाहिए।
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