मेरा पति : मेरा देवता

मेरा पति : मेरा देवता 

(अवध किशोर मिश्र)
".. ठहरो, ठहरो! मैं आई... न.. न..न..करवट मत फेरना.. " मैं अभी पैरों में महावर, हाथोंमें मेंहदी लगाकर, नथिया, बाली,मंगटीका पहनकर गजरों की माला बालोंमें गूंथ ही रही थी कि अचानक 'पड़-पड़' की आवाज सुनकर 'उनके ' पलंग पर नज़र पड़ी.. समझ गई.. फिर पतला दस्त हुआ है... पल भर में नथिया, बाली, मंगटीका, गजरा नोचकर फेंकी और पलंग के पास पहुंचकर पति को देखी-पूरा कपड़ा मल-मूत्र से सना है... नाक में एक अजीब दुर्गंध आई.. नहीं.. नहीं.. कोई दुर्गंध नहीं.... भ्रम है... सब ठीक है..
उनके दोनों घुटनों के नीचे दायाँ हाथ और कंधे के नीचे बांया हाथ लगाकर गोद में उठाकर बाथरूम के गर्म शावर के नीचे प्लास्टिक की मचिया पर बैठाकर हलके सुषुम पानी से धीरे धीरे सहला कर नहलाई, सूखे कपड़े से वदन पोंछकर सूखे कपड़े बदली...पलंग के रबर शीट, बेडशीट चेंजकर आहिस्ते से उन्हें लिटा दी.. बिछावन पर केवड़े के इत्र छिड़ककर बाथरूम में आकर उनके गंदे कपड़े को साफ कर सूखने के लिए बरामदे में डाल दी... फिर से स्नान कर बाहर निकल ही रही थी कि पड़ोस की रिंपी दूसरी बार आई-
"रंजना आंटी! रंजना आंटी !.. तीज का पूजा कराने पंडित जी आधे घंटे से आकर बैठे हैं.. मम्मी और मोहल्ले की सब आंटी आपका इंतज़ार कर रही हैं.. पंडित जी भी कह रहे हैं कि रंजना मैम को आ जाने दीजिये... तब शुरू करेंगे... "
मैंने रिंपी को एक मुट्ठी काजू और किशमिश देते हुए कहा -
"बेटा! मम्मी को पूजा शुरू करने को कह देना.. मुझे दस-पंद्रह मिनट और लगेंगे... "
"अच्छा आंटी! " कहकर रिंपी चली गई. अब श्रृंगार करने से मन उचट गया था.. :ये' महीनों से बीमार.. सूखकर कांटा हो गए.. वजन 65-70 किलो से घटकर 3०-35 किलो रह गया... शरीर हड्डी का ढांचा मात्र.. आंखों के कोटर में गोलक धंस गए थे.... गालों की हड्डियां उभर आई थीं... मात्र 38 साल की उम्र में 85 साल के बूढ़े जैसे लग रहे हैं., पानी भी मुश्किल से पच रहा है.. अनाज तो देखते भी नहीं.. दिन रात मिलाकर दसियों बार दुर्गंध युक्त पतला हरा पाखाना और उल्टी आम बात है.. श्रृंगार करुं तो किसके लिए?... जब इनकी आंखे मेरे श्रृंगार की रूप राशि की प्यासी थीं... तो मैं न जाने कितने किशोर.. युवा, प्रौढ़, वृद्ध की अंकशायिनी बनी पैसे और पावर को अपने दोनों जांघों के बीच....... तड़पती, गिड़गिड़ाती... मनुहार करती, बिलबिलाती देख रही थी.. एक से बढ़कर एक माफिया, सत्ताधारी, मंत्री, संतरी सबको दस ईंच से डेढ़ फुट के क्षेत्र पर धराशायी होते देखा है....
दस वर्षों में बिना एक भी फूटी कौड़ी के अस्सी करोड़ की प्रापर्टी जमा करना हंसी ठट्ठा खेल थोड़े न है.. कई महानगरों में आठ- आठ,दस-दस करोड़ की चार पांच राजमहलनुमा बिल्डिंग्स हैं...


"पूज्... ज्... जा ... में नहीं जाना है क्या? " एकदम टूटती बुझती मद्धिम आवाज में उन्होंने कहा.
"जाना तो था... पर आपको इस हालत में छोड़कर कैसे जा सकती हूँ... "
"नहीं,.. नहीं तुम मेरी चिंता छोड़ दो.. अभी तक गहने भी नहीं पहनीं.. मैं भी तो पता नहीं कैसा अभागा पति हूँ.. तुम्हें एक सोने का एक असली गहना भी न दे सका.. शादी में भी उतनी आमदनी नहीं थी... पाजेब ,कमरधनी, बिछिया सब चांदी का बनवा लिया था लेकिन सोना महंगा होने के कारण राॅल्ड गोल्ड का नकली बाली, नदियाँ, चेन और मनगटीका ही चढ़ा दिया था.... " उनकी आंखों में पश्चाताप के आंसू लरज उठे...
"नहीं.. नहीं.. पप्पू के पापा! आप दु:खी मत हों... मेरे लिए अपने पति का दिया हुआ वही अनमोल धरोहर है ... तीनों लोकों के ताज.. संपत्ति से भी बढ़ कर है.. "
मैंने उनकी ठुड्डी को सहलाते हुए कहा...
"ठीक है,.. तुम जाओ... सब इंतज़ार कर रहे होंगे... "
मैं फिर से उन्हीं राॅल्ड गोल्ड की चमकती , .. बाली, नथिया, चेन, मनगटीका पहन दान करने की साड़ी ब्लाउज,सौभाग्य वस्तु सामग्रियों का पैकेट पप्पू को पकडा कर पूजा की थाली, डलिया लेकर रिंपी के घर आई..
"बेटा पप्पू! जबतक मैं न आऊँ.. तुम पापा के पास ही बैठना... उनसे बात करते रहना... कुछ घटे तो दे देना...
मैं जल्दी ही पूजा समाप्त कर आरही हूँ"
"जी अच्छा मम्मी! " पप्पू लौट आया था...
जब मैं पंहुची पंडित जी पूजा कराकर कथा शुरू करने वाले थे.. मुझे देखते ही अति उत्साहित हो गए... मैं कारण जानती थी.. तीज में सारी महिलाएं.. बाजार की वही रेडीमेड ब्लाउज पीस चुड़ी, ऐनक कंघी 25₹ की पैकेट दान करतीं... परन्तु मैं सोच रखी थी कि पाप की अकूत संपत्ति जमा कर रखी हूँ.. साल में एक बार पांच हज़ार की साड़ी दान करने से मेरा कुछ घटेगा नहीं.. परंतु पंडिताईन जी और उनके बाल बच्चों को आशीर्वाद मिलेगा तो कुछ तो मेरे पति और बेटे पप्पू का कल्याण होगा... तभी से हर पूजा पाठ में इक्कीस सौ ₹से कम दक्षिणा नहीं देती...
हालांकि पंडित जी ने एक बार डरते डरते कहा था-
"रंजना मैम! मोहल्ले वाले आपके बारे में कुछ अजीब अजीब बातें करते हैं.... मुझे सुनकर अच्छा नहीं लगता..."
मैंने भृकुटि टेंढ़ीकर कहा-
"पंडित जी! कौन क्या कहता है.. उसकी बात इधर उधर कहने में आपकी शोभा नहीं है... आप जैसे ज्ञानी को स्त्रियों के पचड़े में नहीं पड़ना चाहिए.... वैसे आपके
संतोष के लिए इतना बता दूँ कि ... जो लोग मेरे बारे में कहते हैं... वह 100 नहीं 200% सही है... आशा है आपकी जिज्ञासा शांत हो गई होगी... "
तब से पंडित जी निरुत्तर हो गए थे.हरितालिका तीज की कथा शुरू हो गई....


"कैलाश शिखरे रम्ये गौरी पृच्छति शंकरम्|
गुह्याद् गुह्ययतरं गुह्य कथ्यस्व महेश्वर||........


एकबार कैलाश पर्वत के शिखर पर बैठे माता पार्वती जी ने शंकर भगवान से पूछा-" हे नाथ! आप मुझपर प्रसन्न हों तो अत्यंत गोप्य से गोप्य व्रत जो अत्यंत फल दायक है.. सुनाने की कृपा करें...... "


मेरे साथ सभी महिलाएं हाथ में पुष्प अक्षत ले कथा सुन रही थीं ... और मेरा अतीत चलचित्र की तरह मेरे मानस पटल पर चल रहा था.. मैंने गोप्य... गुह्यतर कथा...अपने सारे पाप की कथा बिना एक शब्द लाग लपेट के अपने पति को स्पष्ट सुना चुकी हूँ... उन्होंने हृदय से माफ भी कर दिया... पर एक वचन लिया था-...
"रंजना! अपने पाप की कमाई मेरे जीते जी मुझमें और मेरे बेटे पप्पू में मत लगाना."
"तब खर्च कैसे चलेगा? .. अच्छा! बिल्डिंगों का किराया जो लाखों का है वह तो जेनुईन है... वह तो लगा सकती हूँ..? "
"कुछ असमंजस में पड़ कर बोले-
"बस किराये का पैसा तक ही... "


"......... हे देवी पार्वती! भाद्रपद मास की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया तिथि को जो स्त्रियाँ अपने सुख सौभाग्य को चाहती हैं.. उन्हें इस पवित्र व्रत हरितालिका तीज के व्रत को अवश्य करना चाहिए........ " कथा आगे बढ़ रही थी.


......मेरी शादी सोलह साल की उम्र में सत्यनारायण ( पप्पू के पापा) के साथ हो गई थी.. उस समय वे 28 साल के थे एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में मास्टर थे.. ऊँचाई 5'11" गेंहुंआ रंग स्वस्थ कद काठी... स्वभाव से सरल.. सीधे साधे...
मेरे सौंदर्य की तुलना में लाखों लड़कियों में शायद कोई एक बराबरी कर सके... बेहद गरीब घर की थी.. अत: पैसे और फैशन के अच्छे कपड़े, गहने के लालच ने मुझे दस साल की कच्ची उम्र में ही चचेरे चाचा ने जिनकी उम्र पचपन की हो गई थी.. पर शादी नहीं हुई थी... टाफी, चाकलेट, फेयर लवली ,पाऊडर, 10-50₹ से शुरू कर गलत रास्ते पर डाल दिया.. 15-16 साल की उम्र होते होते रमेश बाबू अपने जाल में फंसा लिए... बदनामी होने लगी तो अपने साले सत्यनारायण (मास्टर साहब) से शादी करवा दिए... दो साल सत्यनारायण के घर रही.. इसी बीच पप्पू को जन्म दी.... यह सच है कि पप्पू मास्टर सत्यनारायण जी का ही बेटा है... पर मैं तो स्त्री जाति के नाम पर कलंक थी.. मेरा ननदोई रमेश मुझे महानगरों के उस सब्जबाग में ले गया कि..... कि...
मैं चार महीने के दूधमुंहें बच्चे और पति को छोड़कर राजधानी के छोटे होटलों से सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ती बड़ी बड़ी कोठियों, सत्ता धारियों, बड़े बड़े उच्च पदस्थ अधिकारियों, गैंगवार माफियाओं के अंकों से गुजरती' साधारण लोगों के लिए आकाश कुसुम बन गई... इसी बीच मुझे चाहने वाले ने मेरे पति को झूठे गबन में फंसाकर दो साल की जेल भी करवा दिया था..... इधर आठ वर्षों में ही मैं लगभग अरबपति की श्रेणी में आ गई थी... पर.. पर अब अपनी देह से ही घिन आने लगी थी... रोज़ रोज़ नरक की जिंदगी से घृणा होने लगी थी....
एक दिन भगवती चरण वर्मा के उपन्यास पर आधारित फिल्म 'चित्रलेखा' देखकर अपने जीवन से मन उचाट हो गया... बड़ी बेचैनी में अपने इस छोटे शहर में आई तो पतिऔर बच्चे को देखकर मन अजीब सा हो गया... पति ने इतना ही कहा-
"लौट आई रंजना...? अब साथ रहोगी या फिर लौट जाना है?.. "
नहीं.. नहीं... मैं अब सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे साथ और बेटे के साथ ही रहूँगी.... "
इसी मोहल्ले में दो वर्षों से आलीशान बंगला बनाकर रह रही हूँ......
मेरे रूपये को देखकर सामने कुछ कहने की हिम्मत किसी की नहीं होती पर पीठ पीछे की बात की कौन परवाह करता है.....?


शायद कथा समाप्त हो गई थी.... पंडित जी क्षमा प्रार्थना के मंत्र आगे आगे बोल रहे थे और हम सब पीछे से दुहरा रहे थे-
".... सौभाग्यांचप्यवैध्वयं पुत्र पौत्रादिकं सुखम्!
बहुपुण्यफलं सर्वं तत: शांतिं च देहि मे!!
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी!
पूजितासि महादेवि संपूर्णश्च तद्स्तु मे!! "....
.....................
धू... तू.... तु.... ह:..... पंडित जी शंख बजा रहे थे और मैं....... आंखें बंद किए पति के स्वास्थ्य, अपने सौभाग्य, पुत्र की सुखकामना, पाप क्षय की प्रार्थना में ईश्वर के समक्ष डुबी थी..
.


तीज पूजा के बाद पहले तल्ले की सीढ़ी चढ़ रही थी तो अचानक मोबाईल की रिंग हुई -
""
हल्लो रंजना! मैं चीफ मिनिस्टर का बेटा भास्कर बोल रहा हूँ.... आज की रात तुमसे मिलना चाहता हूँ... "


"सुनो भास्कर! मैं पहले वाली रंजना नहीं..
दो साल से अपने परिवार में खुश हूँ.. मेरा रास्ता बदल गया है... बीच में मत आना... वर्ना तुम्हारे बाप का और तुम्हारा दर्जनों विडियो मेरे पास है... न मैं किसी की राह में आऊँगी और न कोई मेरी राह में आए... वरना याद रखना यह सारा विडियो उस मीडिया कर्मी..... गोस्वामी तक पहुँच जाएगा... फिर तलाशना बाप बेटे अपना राजनैतिक कैरियर...... "


अपने पति के पलंग के बगल के आदमकद आईने में अपनी नाक की सीधसे माँग तक खींची सिंदूर की रेखा के बीच मेरे पति की दैदीप्यमान तस्वीर दिखी --
मन ही मन बुदबुदा उठी-

" मेरा पति :मेरा परमेश्वर.... मेरा देवता "
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