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नए अछूत

नए अछूत

राकेश कुमार मिश्र


देखो हमको हम सवर्ण हैं
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है नये भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं;


सारे नियम-कानूनों ने,
हमको ही तो मारा है;
देखो भारत का निर्माता ,
अपने ही घर में हारा है;
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में;
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद में और न्यायालय में;
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं;
बेहद दुःख है नये भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;


'दलित' महज़ आरोप लगा दे,
जेल हमें जाना होगा;
दोषी नहीं निर्दोष हैं हम ,
ये सबूत हमें ही लाना होगा;
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हींने भोंका है,
काले-कानूनों की भट्टी में:
हम सवर्ण को झोंका है;
किसको चुनें, किन्हें हम मत दें ?
सारे ही यमदूत हैं;
बेहद दुःख है नये भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;


प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
मरते घूटते हम ही हैं;
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं;
हर सवर्ण भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है;
अपने तो बच्चे-बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है;
भस्म हमारी महाकाल से,
लिपटी हुई भभूत है;
लेकिन दुःख है नये भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं..


देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है;
डूबा देश रसातल में जब,
हमने ही तो बाहर खींचा है;
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है;
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में कड़वी सच्चाई है;
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं;
बेहद दुःख है नये भारत में,
हम सब 'नए अछूत' है
🙏🏻
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