क्यों तू है लाचार रे!

क्यों तू है लाचार रे!

मार्कण्डेय शारदेय
जो गाता औ’ सदा मानता वसुधा को परिवार रे!
क्यों तू है लाचार रे!
जग को जिसने वेद पढ़ाया,
लोकतन्त्र का मार्ग दिखाया,
जिसकी लाठी भैंस उसी की, नहीं नीति स्वीकार रे!
शरणागत-रक्षण अपनाया,
निर्बल जन का बल बन आया,
याचक को दी नहीं निराशा, रखा न कभी उधार रे!
साँपों को भी दूध पिलाता,
धर्म-कर्म जीना सिखलाता,
लाख बुराई कर जो माँगे, क्षमा, बही रसधार रे!
पत्थर माटी पेड़-लताएँ,
कण-कण तृण-तृण में आत्माएँ
जीव-जन्तु में परम तत्त्व का करता साक्षात्कार रे!
वीरों धीरों विद्वानों के,
त्याग-दयामय गुणवानों के
वंशज है, उनका ही तन में है शोणित-संचार रे!
शिवि दधीचि हनुमान राम का,
परशुराम बलराम श्याम का,
भीष्म युधिष्ठिर कर्ण धनंजय एकलव्य-आचार रे!
राणा शिव है छत्रसाल है,
विष्णु जिष्णु यम महाकाल है,
अमरों की सन्तान अमर है न्याय-हेतु अवतार रे!
अबला होती नहीं नारियाँ
फूलों की हैं भले क्यारियाँ
विदुला कुन्ती पद्मा जीजा-सी है कई कतार रे!
इसे गुलामी ने है तोड़ा,
ज्ञान, शक्ति, युवमन-घट फोड़ा,
इसीलिए है सहनशील बन सहता अत्याचार रे!
आओ अग्निवीर बन जाएँ,
घर-घर पौरुष-ज्वाल जलाएँ
मानवता का जो रिपु, काँपे थर्थर सुन हुंकार रे!क्यों तू है लाचार रे!
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