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एक कल सीखाकर है जाता

एक कल सीखाकर है जाता ,

दूसरा महद आनेवाला कल ।
काटे नहीं कट पाता है समय ,
मधुर मिलन इंतजार के पल ।।
चाहे हो घोर संकट का समय ,
कुछ पल भी तब जाता खल ।
किसी के आने की हो सूचना ,
निज मन भी तब होता विह्वल ।।
वर्तमान में बैठे आस लगाए ,
कब आएगा आनेवाला कल ।
भविष्य भी ये भूत बन जाता ,
निराश करता इंतजार के पल ।।
इंतजार के पल मधुर फल देते ,
आज नहीं तो निश्चित कल ।
इंतजार संग परिश्रम हो प्यारा ,
परिश्रम देता इंतजार में बल ।।
समय का हो समुचित उपयोग ,
पहचान बिन समय जाता टल ।
फिर पछताय होत ही क्या है ,
जब समय ही जाता है निकल ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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