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रावण के नाभि में अमृत की कथा

रावण के नाभि में अमृत की कथा

जय प्रकाश कुंवर
भगवान् राम का चरित्र अनंत है और उनकी कथाएँ भी अनंत हैं। उनकी कथाओं को साधु संत लोग अपने मति अनुसार तरह तरह से कहते हैं।
हरि अनंत हरि कथा अनंता।
कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।।
भगवान् राम का चरित्र अथाह समुद्र है, जिसका थाह पाना साधारण मनुष्य के लिए संभव नहीं है ।
राम अमित गुन सागर, थाह कि पाव‌इ कोई।
भगवान् राम के चरित्र को जाननाऔर समझना उनकी भक्ति और उनमें विश्वास के बिना सम्भव नहीं है और बिना उनके कृपा के स्वप्न में भी मनुष्य शांति नहीं पा सकता है। इस लिए जो ज्ञानी और स्थिर बुद्धि हैं वे सारे तर्क वितर्क छोड़ कर सुंदर और सुखद भगवान् राम का भजन कीर्तन करते हैं।
बिनु बिस्वास भगति नहीं, तेहि बिनु द्रवहिं न रामु।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ, जीव न लह विश्रामु।।
असि बिचारि मतिधीर, तजि कुतर्क संसय सकल।
भजहिं राम रघुबीर, करुनाकर सुंदर सुखद।।
भगवान् राम ( श्री हरि ) का जब भी अवतार इस पृथ्वी पर हुआ है, तो उसका कुछ न कुछ कारण अवश्य रहा है। उन्होंने अनेकों रूपों में समय समय पर अवतार लेकर अनेकों लीलाएँ की हैं। उनके त्रेता युग में मानव अवतार एवं लीलाएँ उनमें से एक है। इस युग में उन्होंने भगवान् श्री राम के रूप में अयोध्या के राजा दशरथ जी के घर में उनके पुत्र के रूप में जन्म लिया था, जो पृथ्वी को राक्षस बिहीन करने के लिए था और मुख्यतः अभिमानी रावण को मारने के लिए था।
सर्व समर्थ होने के नाते वे रावण को किसी बिधि और कहीं से भी बिना किसी से सहायता लिए मार सकते थे, परंतु इस अवतार में भी उन्होंने अपने भक्तों को आदर और मान सम्मान देने के लिए अनेकों लीलाएँ की। यहाँ तक की रावण को मारने के लिए सब कुछ जानते हुए भी रावण के भाई और अपने भक्त विभीषण से सलाह लिया। उनकी मानवीय लीलाओं को पढ़कर और सुनकर हमें बहुत कुछ जानने तथा समझने को मिलता है।
त्रेता युग में लंका का राजा रावण था। वह बलवान, धनवान, चतुर राजनीतिज्ञ और महान शिव भक्त था। उसकी पत्नी का नाम मंदोदरी और एक भाई का नाम विभीषण था।
शिव भक्त रावण ने भगवान् शिव की तपस्या करके उनसे अमरता का दिव्य अमृत का आशीर्वाद पाया था। उसने ब्रह्मा जी की तपस्या कर अनेकों अस्त्र और आशीर्वाद प्राप्त किए थे। इस सबके अलावा उसके नाभि कुंड में अमृत था जिसके चलते उसको मारना इतना आसान नहीं था। कहते हैं कि मनुष्य के शरीर में नाभि वह स्थान है जहाँ मनुष्य का दूसरा मस्तिष्क स्थित रहता है और उसे सौर जाल कहते हैं। नाभि में स्थापित की गई कोई भी वस्तु शरीर के सभी अंगों में स्थापित हो जाती है।
अब प्रश्न उठता है कि इन ब्रह्मा शिव के आशीर्वाद के अलावा भी रावण के नाभि कुंड में अमृत कहाँ से आया और किसने स्थापित किया। उस अमृत के चलते ही उसे मारना असंभव था। और उसी के कारण वह और भी अभिमानी बन गया था तथा अनेकों प्रकार का अत्याचार कर रहा था।
इस संबंध में कहा जाता है कि रावण की नाभि कुंड में अमृत स्थापित करने वाली उसकी पत्नी मंदोदरी और उनके छोटे भाई विभीषण ही थे। एक बार रावण और बालि के बीच युद्ध हुआ था। जिसमें रावण बालि के हाथों चोटिल होकर बिमार पड़ गया था। इससे उसकी पत्नी मंदोदरी बहुत चिंतिंत हुई थी और उसने मन में रावण को अमर बना देने को ठान लिया था।
मंदोदरी के पिता का नाम मायासुर था जो राक्षसों का राजा था। उसकी माता का नाम हेमा था जो स्वर्ग की एक अप्सरा थी। मंदोदरी ने अपने पति को अमर बनाने के लिए अपने माता पिता की सहायता ली। उसने अपने पिता से अमृत के बारे में जानकारी जुटाई और अपनी माता से उड़ने की शक्ति प्राप्त कर चन्द्र लोक पहुँच गयी जहाँ अमृत कलश रखा था। वहाँ के नियम के मुताबिक शरद पूर्णिमा के दिन जब चन्द्र देव धरती पर कुछ अमृत की बूंदें गिराने के लिए अमृत कलश निकाले तब मौका निकाल कर मंदोदरी ने कलश चुरा लिया और चोरी का पता लगने पर देवताओं के साथ छिना झपटी में कलश तो मंदोदरी के हाथ से निकल गया पर एक बूंद अपने अंगुठी में छिपा कर वापस चली आई। लंका आकर मंदोदरी ने अपने देवर विभीषण को यह बात बताई। जब उसने उस अमृत को रावण के शरीर में स्थापित करने के लिए विभीषण से कहा तो वो राजी हो गये परंतु यह बात उन्हीं दोनों के बीच रहे ऐसा शर्त रख दिया। इस बात से मंदोदरी राजी हो गई। तब उन दोनों ने पूर्णिमा के दिन ही रावण की नाभि में इसे स्थापित करने का निर्णय लिया।
पूर्णिमा की रात्रि को रावण तथा मंदोदरी ने रावण को अशोक वाटिका में बुलाकर मदिरा के साथ कुछ और जड़ी बुटियां पिलाकर उसे अचेत कर दिया। उसके बाद कमल नाल पद्धति द्वारा विभीषण ने उस अमृत के बुंद को रावण की नाभि में स्थापित कर दिया। नाभि शरीर के समस्त नाड़ियों का केंद्र होने के कारण वह अमृत रावण के शरीर के सभी नाड़ियों और अंगों में स्थापित हो गया। इस कारण से रावण अमर हो गया।
जब राम रावण युद्ध चल रहा था और बार बार सिर कटने के बावजूद भी रावण मर नहीं रहा था, उस समय उसके नाभि में अमृत होने की बात युद्ध भूमि पर विभीषण ने राम को बताया, जिससे रावण की नाभि में बाण मारकर और सिर काटकर श्री राम ने रावण का वध किया। 
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