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प्रत्येक व्यक्ति पुस्तक से जुड़े, यही सच्ची संगिनी और मार्ग-दर्शिका : न्यायमूर्ति संजय कुमार|

प्रत्येक व्यक्ति पुस्तक से जुड़े, यही सच्ची संगिनी और मार्ग-दर्शिका : न्यायमूर्ति संजय कुमार|

  • साहित्य सम्मेलन में १५ दिवसीय 'पुस्तक चौदस मेला' के साथ हुआ 'हिन्दी पखवारा' का हुआ उद्घाटन,
  • राष्ट्रभाषा-प्रहरी नृपेंद्र नाथ गुप्त की मनायी गयी जयंती, पुस्तक 'अध्यात्म की ओर', 'उत्साह तुम्हारा अभिनन्दन' तथा 'सकारात्मक भारत-उदय' का हुआ लोकार्पण ।


प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह विद्यार्थी हो, शिक्षक हो अथवा और कुछ भी, सभी साक्षरों को पुस्तकों से जुड़ना चाहिए। यही सबकी सच्ची और अच्छी संगिनी और मार्ग-दर्शिका होती हैं। यह केवल ज्ञान ही नहीं प्रदान करती, बल्कि दुखी मन का रंजन भी करती है और थके हुओं को नया उत्साह और नयी ऊर्जा प्रदान करती है।
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आरंभ हुए, 'हिन्दी पखवारा एवं पुस्तक चौदस मेला' के उद्घाटन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में अपना व्याख्यान देते हुए, राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कही। उन्होंने कहा कि आजकल नयी पीढ़ी पुस्तकों से दूर होती जा रही है। उन्हें समझाया जाना चाहिए कि जीवन में सफलता के लिए पुस्तकें ही बल प्रदान करती हैं।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पूर्व केंद्रीय मंत्री पद्मभूषण डा सी पी ठाकुर ने कहा कि, हिन्दी के विकास में सरकार की भूमिका तो है ही, किंतु इसके उन्नयन में सभी भारतवासियों का योगदान आवश्यक है।
सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, १४ सितम्बर १९४९ को भारत की संविधान सभा ने 'हिन्दी' को भारत सरकार के कामकाज की भाषा घोषित की थी, जिसके उपलक्ष्य में संपूर्ण भारतवर्ष में इस तिथि को 'हिन्दी-दिवस' के रूप में मनाया जाता है। किंतु इसका कठोर सत्य यह है कि, संविधान सभा के इसी निर्णय के साथ जोड़े गए दो 'परंतुकों' के कारण और बाद के दिनों में शासन में बैठे हिन्दी के प्रति द्रोह रखने वाले लोगों ने इसे आज तक कार्यरूप में परिणत नहीं होने दिया। अब तो भारत के लोग 'राजभाषा' नहीं 'राष्ट्र-भाषा' चाहते हैं। और, इस स्थान के लिए 'हिन्दी' देश की सर्व-मान्य भाषा है। भारत सरकार को चाहिए कि यथा शीघ्र हिन्दी को 'भारत की राष्ट्रभाषा' घोषित करने के संबंध में आवश्यक विधि-सम्मत कार्रवाई करे, ताकि भारत की संविधान सभा के संकल्पों को पूरा किया जा सके।
पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि हिन्दी देश की सबसे अधिक बोली जाने वाली और विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। भाषा का महत्त्व यह है कि इससे व्यक्ति अपने को अभिव्यक्त करता है। इसके अभाव में आदमी गुंगा हो जाता है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा पूनम आनन्द, डा पुष्पा जमुआर, विवेक कुमार गुप्त तथा उदय मन्ना ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर बिहार के पूर्व अपर सचिव और लेखक रमेश प्रसाद रंजन की पुस्तक 'अध्यात्म की ओर' सम्मेलन द्वारा प्रकाशित कवि अमरेन्द्र नारायण की पुस्तक 'उत्साह तुम्हारा अभिनन्दन (द्वितीय संस्करण)' तथा राम जानकी संस्थान द्वारा प्रकाशित 'सकारात्मक भारत-उदय' के तीसरे खंड का लोकार्पण भी किया गया। इसके पूर्व सम्मेलन के पूर्व उपाध्यक्ष और 'राष्ट्रभाषा-प्रहरी' के रूप में चर्चित साहित्यकार नृपेंद्र नाथ गुप्त की जयंती पर, उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर, उन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर, भारतीय प्रशासनिक सेवा से अवकाश प्राप्त अधिकारी और कवि बच्चा ठाकुर, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, डा शालिनी पाण्डेय, कवयित्री आराधना प्रसाद, ई अशोक कुमार, प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, जय प्रकाश पुजारी, ई आनन्द किशोर मिश्र, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा सुमेधा पाठक, डा प्रतिभा रानी, सागरिका राय, प्रेमलता सिंह राजपुत, डा रेणु मिश्र, शायरा डा तलत परवीन, डा दिनेश दिवाकर, डा एम के मधु, नागेन्द्र पाठक, चंदा मिश्र, ब्रज किशोर पाठक, चितरंजन भारती, अभय सिन्हा, डा रणजीत कुमार, नरेंद्र कुमार, डा वी पी त्यागी, उपेंद्र नारायण पाण्डेय, महफ़ूज़ आलम, प्रकाश रंजन, विभूति रंजन, डा मुंती कुमारी, डा पंकज कुमार वसंत, अभिलाषा कुमारी, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्त, नीरव समदर्शी, अरुण कुमार श्रीवास्तव, नेहाल कुमार सिंह 'निर्मल' समेत बड़ी संख्या में हिन्दी-सेवी और प्रबुद्धजन उपस्थित थे। पुस्तक-मेला में, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रकाशन विभाग, नेशनल बूक ट्रस्ट और कई अन्य स्थानीय प्रकाशकों ने अपने कक्ष लगाए हैं। मेला के प्रथम दिन सैकड़ों की संख्या में सुधी पाठकों ने पुस्तकों का निरीक्षण किया और पुस्तकें क्रय की।
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