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देवकार्य में निषिद्ध मानी गई चांदी की

देवकार्य में निषिद्ध मानी गई चांदी की

वस्तुओं का उपयोग श्राद्ध में क्यों करना चाहिए ?
पूजाकार्य में निषिद्ध मानी गई चांदी की वस्तुओं में रजोगुण एवं वायुतत्त्व होने के कारण पितर उनमें नैवेद्य शीघ्र ग्रहण कर सकते हैं, इसलिए चांदी की वस्तुओं का श्राद्ध में उपयोग किया जाता है ।

सौवर्णं राजतं वाऽपि पितृणां पात्रमुच्यते । - मत्स्यपुराण, अध्याय १७, श्‍लोक २०

अर्थ : पितरों से संबंधित विधियों के लिए सोना अथवा चांदी के पात्र का उपयोग करें ।

शिवनेत्रोद्भवं यस्मात् तस्मात् तत्पितृवल्लभम् ।
अमङ्गलं तद्यत्नेन देवकार्येषु वर्जयेत् ॥
– मत्स्यपुराण, अध्याय १७, श्‍लोक २३

अर्थ : चांदी शंकर के तृतीय नेत्र से उत्पन्न हुई है । इसलिए वह पितृकार्य के लिए प्रशस्त (उत्तम) है; परंतु देवकार्य में वह अशुभ होती है । इसलिए इन कार्यों में चांदी के पात्र प्रयत्नपूर्वक वर्ज्य करें ।

अध्यात्मशास्त्रीय विश्‍लेषण
१. ‘चांदी में सत्त्वगुण ५० प्रतिशत, रजोगुण ४० प्रतिशत एवं तमोगुण १० प्रतिशत है । चांदी में वायुतत्त्व भी अधिक मात्रा मेें है । इसलिए चांदी की वस्तुओं का उपयोग करते समय रजोगुण की वृद्धि होने से पितर चांदी के पात्र में रखा नैवेद्य शीघ्र ग्रहण कर सकते हैं । इस प्रकार पितरों को चांदी का लाभ मिलता है; किंतु देवकार्य करते समय रजोगुण की अधिकतायुक्त चांदी के उपकरणों का उपयोग करने पर देवकार्य से निर्मित सात्त्विकता का लाभ सभी को नहीं होता । इसलिए देवकार्य में चांदी का उपयोग न करें ।’

२. ‘अन्य धातुओं की अपेक्षा चांदी में इच्छाशक्तिरूपी तरंगें आकृष्ट और धारण करने का गुण अधिक होता है । चांदी के सर्व ओर स्थित नादमय मंडल, इच्छातरंगों से प्रभारित रहता है ।

अ. चांदी के उपर्युक्त मंडल की नादतरंगों और पितरों के सूक्ष्म शरीर से प्रक्षेपित होनेवाली तरंगों की रचना में पर्याप्त समानता होने के कारण, लिंगदेह से निकलनेवाली तरंगें तथा कुछ मात्रा में यमतरंगें भी चांदी की ओर आकर्षित होती हैं । इसलिए कहा जाता है कि ‘पितरों को चांदी परमप्रिय है ।’

आ. चांदी के उपयोग से श्राद्धस्थल पर इच्छातरंगों तथा यमतरंगों से युक्त नादमंडल निर्मित होता है । इससे पितरों का श्राद्धस्थल पर आगमन सहजता से होता है ।

इ. चांदी में पृथ्वी एवं आप तत्त्व की तरंगें धारण करने की क्षमता अधिक होती है । पितरों के लिंगदेह में पृथ्वी एवं आप तत्त्व की मात्रा अधिक होती है । इसलिए, चांदी का उपयोग करने से पितरों पर श्राद्धकर्म की प्रत्येक क्रिया का प्रभाव अल्प समय में होता है ।

ई. जीव के स्थूल शरीर में पृथ्वी एवं आप तत्त्व की मात्रा अधिक होने के कारण चांदी के पात्र में भोजन करनेवाले सामान्य व्यक्ति को भी अल्प समय में भोजन की सूक्ष्म-वायु मिल जाती है ।

उ. चांदी धातु की सूक्ष्म संरचना तथा पितरों के विविध कोषों और मानव शरीर की सूक्ष्म संरचना में अधिक समानता होने के कारण मनुष्य तथा पितरों से संबंधित अनुष्ठानों में चांदी का अधिक उपयोग किया जाता है ।

ऊ. अपने रजोगुण के कारण चांदी देवकार्य में निषिद्ध मानी गई है ।’

संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘श्राद्ध (भाग – १) महत्त्व एवं अध्यात्मशास्त्रीय विवेचन’
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