जीवश के संदर्भ कदाचित प्यारे हो जाते ।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
जीवश के संदर्भ कदाचित प्यारे हो जाते ।निष्ठा के संकल्प - पत्र सब न्यारे हो जाते।।
हाट बाट में नदी घाट में क्यों सौदेबाजीी।
इससे तो अच्छा होता सब खारे हो जाते।।
लोहे को सोना करने की है आपा-धापी ।
किन्तु यत्न करते तो पारद सारे हो जाते।।
सपने सभी देखते हैं जागरण नहीं दिखता।
ठगे -ठगे- से निष्क्रिय तन से हारे हो जाते।।
सीमा से बाहर आने का मंत्र जटिल होता।
कुछ अपने जिद मे उलझे वे हारे हो जाते।।
समय किसी की कहाँ प्रतीक्षा कर पाता पथ में।
साथ- साथ चलने वाले ही तारे हो जाते।।
रामकृष्ण
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इससे तो अच्छा होता सब खारे हो जाते।।
लोहे को सोना करने की है आपा-धापी ।
किन्तु यत्न करते तो पारद सारे हो जाते।।
सपने सभी देखते हैं जागरण नहीं दिखता।
ठगे -ठगे- से निष्क्रिय तन से हारे हो जाते।।
सीमा से बाहर आने का मंत्र जटिल होता।
कुछ अपने जिद मे उलझे वे हारे हो जाते।।
समय किसी की कहाँ प्रतीक्षा कर पाता पथ में।
साथ- साथ चलने वाले ही तारे हो जाते।।
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