अपने भीतर भी झाँकिए साहब।
डॉ रामकृष्ण मिश्रअपने भीतर भी झाँकिए साहब।
दूसरों को भी आँकिए साहब ।।
कुछ की ऊँची इमारते गातीं ।
उनकी छाया भी मापिए साहब।।
खो गयी क्या पता कहाँ निष्ठा।
गलतियों को सुधारिए साहब ।।
क्यों मनुजता यहाँ बाजार हुई।
रेउटी अब उखाडिए साहब।।
बह रही जो हवा नशीली है।
उसकी हद को सँभालिए साहब।।
आदमी जानवर नहीं होता।
कुछ तो अंतर विचारिए साहब।। ***********
रामकृष्ण
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com