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हम माटी के लोंदे जैसे थे,

हम माटी के लोंदे जैसे थे,

जब जाने लगे प्राइमरी स्कूल।
शत शत नमन है शिक्षक लोगों को,
हम कैसे सकते उनको भूल।।
कुम्हार जैसे चाक चढ़ाया,
पीट पाट कर आकार बनाया।
चाक पर हमें नचा नचाकर,
सुन्दर एक मूरत बनाया।।
अब जब मूरत तैयार हुआ तो,
रंग सजाने की बारी आई।
हाईस्कूल , कालेज के शिक्षकों ने भी,
अपनी फर्ज खुब निभाई।।
जीवन में जो कुछ भी बना,
अमन और सुख चैन है।
विनम्र भाव से कह सकता हूँ,
यह उन शिक्षकों की देन है।।
शिक्षक दिवस के अवसर पर,
ये शब्द पुष्प उन्हें अर्पित है।
उनकी देन के बदले क्या दे सकते हैं,
यह जीवन उन्हें समर्पित है।।
जय प्रकाश कुवंर
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