अबला
अबला नहीं सबला है विधवा,कुछ भी कहें बदली है विधवा ।
विषम परिस्थितियों से लड़कर,
बड़ी मुश्किल से संभली है विधवा ।
लाख बाधाएँ राह में आए,
हिम्मत से लड़ती है विधवा ।
दिन भर कठिन परिश्रम कर,
बच्चों को पालती है विधवा ।
तिरस्कार अपनों से सहकर,
घुट-घुट कर जीती है विधवा ।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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