है ज़रूरत ताक़तों को पहचानने की, जो लड़वा रहे,
भाई को भाई के विरूद्ध, घर के भीतर ही अडवा रहे।कर्म आधारित व्यवस्था समाज की थी, शास्त्र कहते,
बाँट कर जातियों उपजातियों में, अपनों को भिडवा रहे।
जो पढ़ा लिखा ज्ञानवान, ब्राह्मण बन गया,
शूरवीर राष्ट्र रक्षा मे तना, क्षत्रिय तन गया।
व्यापार कर्म में लिप्त हुआ, वैश्य कहलाया,
सेवा कर्म में संलिप्त श्रेष्ठ नर, सेवक बन गया।
जन्मना कोई न ब्राह्मण, न कोई वैश्य था,
ब्रह्म को जिसमें भी जाना, वह ब्राह्मण था।
बाहुबली समाज के, क्षत्रिय बन आगे बढ़े,
कृषि कर्म पशु पालन, वैश्यों का दायित्व था।
आज जो ब्राह्मण रहा, कल क्षत्रिय भी हो सकेगा,
बाहुबली होगा यदि, सुरक्षा में तत्पर हो सकेगा।
कर्म के आधार पर जीवन, शास्त्रों में वर्णित सभी,
व्युत्क्रम कर्म आधारित, जातियों में हो सकेगा।
डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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