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संबंधों की पांच सीढ़ियां

संबंधों की पांच सीढ़ियां

"संबंधों की कुल पांच सीढ़ियां होती हैं!" यह वाक्य अपने आप में एक गहरी सच्चाई को उजागर करता है। जीवन में हम अनेक तरह के संबंध बनाते हैं, चाहे वो पारिवारिक हों, मित्रतापूर्ण हों या प्रेम संबंध। इन सभी संबंधों को मजबूत बनाने के लिए हमें कुछ सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।

पहली चार सीढ़ियां – देखना, अच्छा लगना, चाहना और पाना – ये तो प्रारंभिक चरण हैं। हम किसी को देखते हैं, हमें वो अच्छा लगता है, हम उन्हें पाना चाहते हैं और अंततः पा भी लेते हैं। ये भावनाएं स्वाभाविक हैं और इन्हें महसूस करना मानवीय है । यह सभी भावनाएं अस्थायी होती हैं। ये भावनाएं समय के साथ बदल सकती हैं। लेकिन संबंध को निभाना एक सतत प्रक्रिया है। इसमें धैर्य, समझदारी, त्याग और समर्पण की आवश्यकता होती है।

लेकिन सच्चा परीक्षण तो तब आता है जब हम पांचवीं सीढ़ी पर पहुंचते हैं – निभाना। पा लेने के बाद संबंध को बनाए रखना, उसमें मधुरता बनाए रखना, एक-दूसरे के लिए समर्पित रहना, यही असली चुनौती होती है।

निभाना क्यों कठिन है? क्योंकि इसमें धैर्य, समझदारी, त्याग, क्षमा और विश्वास की आवश्यकता होती है। हर रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते हैं, और इन उतार-चढ़ावों को सहन करने की क्षमता ही संबंधों को मजबूत बनाती है।

संबंधों को मजबूत बनाने के लिए हमें सिर्फ देखना, अच्छा लगना और पाना ही नहीं चाहिए, बल्कि सबसे महत्वपूर्ण है निभाना। जब हम किसी संबंध को निभाते हैं, तो हम उसमें एक गहरापन और स्थायित्व लाते हैं। इसलिए, आइए हम सभी अपने संबंधों को निभाने का संकल्प लें।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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