कठिन जीवन है मगर इन्सानियत भी है।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
कठिन जीवन है मगर इन्सानियत भी है।है भविष्य समीप तो अपना विगत भी है।।
लोग कुछ डरते स्वयं की देख परछाई।
बीस प्रतिशत त्याग है तो शेष बदनीयत भी है।।
जो पुनीत विचार मंथन में रमे रहते सदा ।
शान्ति सर्वसुखाय निर्भय शास्त्र के सम्मत भी है।।
शहर मे बहु मंजिले हैं भवन लेकिन पूछिए ।
आपसी दीवार के समरूप ही अभिमत भी है।।
नदी का पानी अगर ठहरा अछूता हो गया।
लोग कहते फिरेंगे है बात सही गलत भी है।।
उँगलियाँ उठती रही हैं सत्य और असत्य पर।
कुछ नयापन कै लिए उत्साह है हिम्मत भी है।।
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