मानव जीवन को उम्मीद पर ही चलना है।।
अंधेरी रात सब इस उम्मीद पर काट लेते हैं।क्योंकि अगले सुबह सूर्य को निकलना है।।
अति बिलंब से असंतोष बढ़ता जाता है।
धीरे धीरे उम्मीद फिर अचेत हो जाता है।।
हमारा भी कभी नारा था, समय से काम निपटाओ।
हर समस्या जटिल नहीं, इसे जटिल मत बनाओ।।
अनुभव बेकार गया, समय पीछे छूट गया।
परिवर्तित जमाने में सब कुछ देखना है नया नया।।
जय प्रकाश कुवंर
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