बचपन की यादें

बचपन की यादें

क्या हुड़दंग, क्या उमंग, क्या मस्त था बचपन,
सतरंगी रंगों से सराबोर था वो बचपन।
उछलकूद,मौज मस्ती से मदमस्त था बचपन,
उन्मुक्त गगन में पतंग - सा स्वछंद था बचपन।
ना भय,ना गम,ना ही कोई अभिमान था,
ना सच,ना झूठ,ना ही रिश्वतखोरी का ज्ञान था।
फुटबॉल के रोमांचक मैचों का ना भूला नजारा,
आज भी याद आते हैं नदियों का वो किनारा।
पक्षियों - सा उन्मुक्त विचरण करता था,
किसी का रोक - टोक नहीं मानता था।
अपनी मनमानियों से लोगों को सताता था,
ऐसा करने से मुझे बहुत ही मजा आता था।
जब भी याद आता है बचपन की शरारत,
मचल उठता है मन करने को शरारत।

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