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बिहार को 'फ़िज़ियोथेरापी' से प्रथम परिचय हेल्थ इंस्टिच्युट ने ही कराया था:-डा अनिल सुलभ

बिहार को 'फ़िज़ियोथेरापी' से प्रथम परिचय हेल्थ इंस्टिच्युट ने ही कराया था:-डा अनिल सुलभ

  • विश्व फ़िज़ियोथेरापी दिवस पर इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च में में आयोजित हुआ समारोह,
  • डा अनूप कुमार गुप्ता को दिया गया 'फ़िज़ियोथेरापी गौरव सम्मान', अनेक पूर्ववर्ती छात्र हुए सम्मानित।

पटना, 9 सितम्बर। गत शताब्दी के अंतिम दशक में बिहार को ही नहीं संपूर्ण भारत वर्ष को 'फ़िज़ियोथेरापी' से प्रथम परिचय, बेउर, पटना स्थित इंडियन इंस्टिच्युट ऑफ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च ने ही कराया था। तब आमजन तो क्या ख़ासलोग भी नहीं जानते थे कि 'फ़िज़ियोथेरापी' है क्या? यहाँ तक कि अस्थिरोग-विशेषज्ञों को छोड़कर अन्य चिकित्सक भी आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान की इस विशेष पद्धति से परिचित नहीं थे। आज संसार में फ़िज़ियोथेरापी विभाग के बिना कोई अस्पताल चल ही नहीं सकता।
यह बातें सोमवार को, हेल्थ इंस्टिच्युट में आयोजित हुए 'विश्व फ़िज़ियोथेरापी दिवस समारोह' की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान में फ़िज़ियोथेरापी की भूमिका बहुत तेज़ी से बढ़ी है। अब इसकी आवश्यकता अस्थि, नस, पेशी, जोड़, स्नायु आदि से संबंधित रोगों तक ही नहीं, लगभग सभी प्रकार के रोगों में पड़ने लगी है। कई बीमारियों में इसके बिना कोई लाभ हो ही नहीं सकता।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि फ़िज़ियोथेरापी के महत्त्व को जनजन तक पहुँचाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। बिना दावा के अनेक शारीरिक समस्याओं और पीड़ा दूर करनेवाली यह एक अत्यंत महत्तवपूर्ण वैज्ञानिक चिकित्सा-पद्धति है।
मुख्य अतिथि और सुप्रसिद्ध अस्थिरोग विशेषज्ञ डा शारजिल रशीद ने कहा कि फ़िज़ियोथेरापी के बिना ऑर्थोपेडिक सर्जरी अधूरी है। इसके बिना अस्थि-रोग का अंतिम उपचार संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि एक फ़िज़ियोथेरापिस्ट को वैज्ञानिक तरीक़े से रोगियों की पहचान करनी चाहिए तथा उसकी स्थिति के अनुसार थेरापी देनी चाहिए। यह ध्यान में रखना चाहिए कि ऑपरेशान के बाद की थेरापी अलग होती है।
इंडियन एशोसिएशन ऑफ फ़िजियोथेरापिस्ट्स की बिहार शाखा के संयोजक और वरिष्ठ फ़िज़ियोथेरापिस्ट डा नरेंद्र कुमार सिन्हा ने कहा कि एक बड़े संघर्ष के बाद भारत सरकार में और बिहार सरकार में भी फ़िज़ियोथेरापी परिषद का गठन हो रहा है, यह प्रसन्नता की बात है।
वरिष्ठ फ़िज़ियोथेरापिस्ट डा उदय शंकर प्रसाद ने कहा कि फ़िज़ियोथेरापी 'पारामेडिकल' नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र चिकित्सा पद्धति है। उन्होंने कहा कि वृद्धजनों को फ़िज़ियोथेरापी की आवश्यकता पड़ती ही है। एक फ़िज़ियोथेरापिसट को उपकरणों से अधिक एक्सरसाइज़ पर बल देना चाहिए।
इस अवसर पर संस्थान के पूर्ववर्ती छात्र और वरिष्ठ फ़िज़ियोथेरापिस्ट डा अनूप कुमार गुप्ता को 'फ़िज़ियोथेरापी गौरव सम्मान' से विभूषित किया गया। पूर्ववर्ती छात्रों डा अकील अहमद सिद्दीक़ी, डा इनायत पालवी, डा आभास सिन्हा तथा डा मृत्युंजय कुमार को भी अंग-वस्त्रम से सम्मानित किया गया। अतिथियों का स्वागत फ़िज़ियोथेरापी विभाग के प्रभारी अध्यक्ष डा नवनीत कुमार ने तथा धन्यवाद ज्ञापन छात्र-कल्याण संकायाध्यक्ष अहसास मणिकान्त ने किया। डा वंदना कुमारी, डा आदित्य कुमार ओझा, डा विकास कुमार सिंह, प्रो संजीत कुमार, प्रो प्रिया कुमारी, प्रो जया कुमारी, प्रो संतोष कुमार सिंह, प्रो मधुबाला कुमारी, प्रो चंद्राआभा, प्रो नेहा कुमारी समेत बड़ी संख्या में संस्थान के शिक्षक और छात्रगण उपस्थित थे।
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