पितरों की स्मृति में
मार्कण्डेय शारदेय
जिस रूप में जहाँ हो,
उस रूप में हमारे।
पितरो! न भूल सकते,
हम हैं ऋणी तुम्हारे।
हम भारतीय जन हैं,
जीवन-मरण न कुछ है,
ये देह वस्त्रवत् हैं,
अभिनेय के सहारे।
हम मोक्ष को मरण का
पूरा विराम कहते,
इसके सिवायआत्मा मरती न लाख मारे।
सुख-दुख, विदा-मिलन या
सम्बन्ध जो रहा हो,
सब कर्मजन्य होते
सब कर्मजन्य होते
टरते न कभी टारे।
यह गेह मातृकुल औ’
है पितृकुल-विनिर्मित,
हैं सेव्य बन्धु-बान्धव
हैं सेव्य बन्धु-बान्धव
कैसे कभी बिसारें?
शिवशक्ति-रूप दोनों
जननी-जनक कृपामय,
ऋणभार है कि इनका,
ऋणभार है कि इनका,
उतरे नहीं उतारे।
तन-मन-द्रविण समर्पित
तन-मन-द्रविण समर्पित
सम्मान से निरन्तर,
परलोक को गए तो
परलोक को गए तो
संस्कार हम न हारे।
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