नंद-देवर और भौजाई
नंद भौजाई और देवर भाभी कारिश्ता बहुत अनोखा होता है।
जब ये आपास में घुल-मिल जाये,
तो कोई कुछ नहीं कहा सकता।
क्योंकि नंद बन जाती है बहिना,
और देवर बन जाता है भाई।
फिर किसकी है क्या है मजाल
जो भाभी को कुछ कहा जाये।।
नंद देवर जब हो जाते है अपने।
तो भाभी को मिल जाता है साहस।
स्नेह प्यार से इनके निभते
फिर अपास में सारे रिश्ते।
होये परेशानी यदि भाभी को कोई,
तो मिलकर कर देते ये सब हल।
और यदि पड़े जरूरत नंद देवर को,
तो भाभी बन जाती इनकी ढाल।
इसी तरह से चलता रहता
इन लोगों का प्यार रिश्ता।।
बड़ा अनोखा होता इनका रिश्ता,
जो घर-परिवार में भर देता खुशियाँ।।
आई पराये घर से वो,
बनकर बहू घर की।
स्नेह प्यार से जीत लिया,
घर-परिवार वालों का दिल।
अब तुम्हीं बतलाओं लोगों,
नारी होती कितनी सम।
सब कुछ कर लेती
वो अपने अनुरूप।
जब साथ खड़े हो जाये
नंद देवर और भौजाई।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुम्बई
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