वृक्ष
हरे-भरे ये वृक्ष निराले,लगते हैं कितने भोले-भाले ।
सारी खुशियों हमें देकर,
स्वयं दुःख को हैं गले लगाते ।
सूर्य की तीखी किरणों से,
शीतल छाया दे हमें बचाते ।
स्वादिष्ट मीठे फलों का,
हमें नित्य फलाहार कराते।
कार्बन को अवशोषित कर,
आक्सीजन हमें उपलब्ध कराते।
स्वयं हलाहल पीकर भी,
हम सबको अमृत पिलाते।
साधु - सा स्वभाव रखकर,
वृक्ष हमें देता यह सीख।
त्याग स्वहित के भावों को,
जन मानस का कल्याण करें।
एक संदेश मेरा है भाई,
करो नहीं तुम वृक्ष कटाई ।
स्वयं अपने ही हाथों से,
ना करो अपनी तुम कब्र खुदाई।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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