Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

पारिजात का जादू

पारिजात का जादू

रात्रि की चादर ओढ़ लेती है जब धरती,
चांदनी में पारिजात करती उसका श्रृंगार।
सुवासित गंध छाती, है शीतलता घनी,
गिरे फूल मन मोहते, मानों हो चांदनी छनी।

पारिजात, हे पारिजात, तू तो स्वर्ग से आई,
इंद्र को हरा, कान्हा द्वारा गई है तू लाई।
दियो सत्यभामा को उपहार, मेरे कन्हाई,
रोष में रूक्मिणी थी बहुत अकुलाई।

चंद्रमा की शुभ्रा चांदी सी चमकती है तू,
इंद्रियों और देह को शीतल करती,
देती खुशी गर मन हो जाये क्लांत।
स्पर्श मात्र से थकान मिटाती है,
जीवन में नई उमंगें भर देती है।

हे पारिजात, तू तो है जादू का पेड़,
देखते ही मन मोह लेती है।
तू तो है मनभावन, सुगंधित,
तू तो है जीवन का सार।
कृष्ण-सत्यभामा का है तू प्रेम आधार,
'कमल' के ये शब्द हैं तुझ पर निसार।

. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" 
 (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ