कल तक थे जो अपने, वो आज पराये हो गए

कल तक थे जो अपने, वो आज पराये हो गए,

स्वार्थ सिद्धि करके आज वो किनारे हो गए ।
कहां गए सिद्धांत उनके, कहां गई खुद्दारी ,
अपने मतलब की खातिर जो पैर पकड़े शत्रु की।


नफरत है ऐसे लोगों से जो मतलब से करते यारी,
सावधान ऐसे लोगों से जो पल में बदले रिश्तेदारी।
नफरत है ऐसे लोगों से जो गंदी सोंच को पाले,
गलती करके भी समाज में, जो ऊँचे स्वर में बोले ।


नफरत है ऐसे लोगों से जो स्वार्थवश रिश्ता जोड़े,
स्वार्थ सिद्ध होते ही जो अपनों से रिश्ते तोड़े।
नफरत है ऐसे लोगों से, जिनकी फितरत छिपी हुई ,
नकली चेहरा सामने आए, असली चेहरा छिपी हुई।


नफरत है ऐसे लोगों से, जो मधुर रिश्ते को ना समझे,
नसीहत भरी बातों पर, जो सदैव अपनों से उलझे।
नफरत है ऐसे मानव से, जो अपनों को तड़पाए,
माफ करे न ईश्वर उनको, जो स्वार्थवश रिश्ते निभाए।

सुरेन्द्र कुमार रंजन
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