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इमानदारी की अकड़

इमानदारी की अकड़

डॉ. मुकेश गर्ग 
इमानदारी अकड़ लाती है ।बिना रीढ़ के नहीं होती न । जबकि बेइमानी डरी सी , सहमी हुई एक कोने में सिकुड़ी रहती है। इमानदारी इसलिए पसंद नहीं की जाती है ।अकडती बहुत है ,सीधे मुह बात नहीं करती है । बेईमानी देखो न ,उसे मेहमान वाजी आती है । अवसरवादिता आती है । वह जब चाहे पल भर में गधे को भी बाप बना सकती है ! इमानदारी पैदाइशी नहीं होती है ,हालातों के द्वारा पैदा होती है । जिनको मौका नहीं मिला, वे इमानदार होते हैं। असल में, ये 'इमानदार' वे लोग हैं जिन्हें बड़ा हाथ मारने का अवसर नहीं मिला। छोटी मोटी बेईमानी से अपना इमान खराब नहीं करते, बल्कि बड़े हाथ मारने में विश्वास रखते हैं।
कुछ लोग जो अपने आपको 'पैदाइशी इमानदार' बताते हैं, ये वो लोग है जो हर डिपार्टमेंट में सरदर्दी का कारण बनते हैं। इनकी अकड़, जिद्दीपन और 'ईमानदारी की तूती' से ऑफिस का माहौल हमेशा खराब रहता है। इनसे निपटने के लिए लोग तरह-तरह की जुगाड़ें लगाते रहते हैं। इमानदारी टिकती नहीं है ,यहाँ से वहा टप्पे खाती रहती है ।
आदमी या तो बेइमान हो सकता है या कामचोर। जो इमानादारी का ढोंग रचता है वो सबसे बड़ा कामचोर होता है । ऑफिस में आपको कोने कुचारे में ऐसा कोई अड़ियल बाबू मिल ही जायेगा । 'अरे यहाँ एक पैसे के दागी नहीं है समझे । काम काम के तरीके से होगा ।त्यागपत्र अपनी जेब में रखते है।जाओ कर दो शिकायत ,डरते थोड़े ही है ।अब तो तुम्हारा काम करेंगे ही नहीं ।अगर दुसरे बाबू से ले दे कर करवाया भी न तो हम टांग अडायेंगे देख लेना।“ ऐसा कुछ सुनने को मिल सकता है ।
'इमानदारी' इतनी बहुमूल्य बना दी ,बिलकुल जैसे की दुर्लभ प्रजाति ,जल्दी ही विलुप्त प्रजाती का दर्जा प्राप्त करके किसी कन्सर्वेसन सेण्टर में छोड़ दी जायेगी । देश में न जाने क्या हो गया, राजनीतिक पार्टियों ने भी इमानदारी का रंडी रोना शुरू कर दिया। इमानदारी के नारों,टोपियों,बैनर और पोस्टरों ने शहर का कचरा कर दिया । इमानदारी को ऐसे ढूंढा जा रहा है जैसे जंगली सफारी में टाइगर को । जंगल सफारी में टाइगर साइडिंग की है कभी ?लोग सुबह से निकलते हैं, घंटों कैमरा लेकर जंगलों में दौड़ते भागते हैं । अगर टाइगर नहीं तो उसकी पूंछ ही दिख जाए तो इतनी खुश होते है की जैसे काली पहाडी का खजाना मिल गया हो । उसे सोशल मीडिया पर वायरल करते है । इमानदारी के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।



एक बार का वाकया सुनें -किसी ऑटोवाले ने पर्स लौटा दिया, जिसमें पूरे 105 रुपये सही सलामत थे । इस इमानदार ऑटो वाले की ख़बर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई। इमानदारी की चर्चाएं होने लगीं, लोग आने लगे, उसके इंटरव्यू होने लगे। रातों-रात वह सेलेब्रिटी बन गया। बिग बॉस का ऑफर मिल गया । साथ ही कई लुभावने ऑफर भी बाजार से आने लगे । कोई उसके साथ रील बनान चाहता था ,कोई यू टूब और फेसबुक पर उसके साथ लाइव रिकॉर्डिंग डाल कर लाइक्स एंड कमेंट्स बटोर रहा था ।अब तो ये ज़िंदा इमानदारी का एक ब्रांड बन गया। कंपनियों में विज्ञापन के लिए भी उसके पास लंबे-चौड़े ऑफर लेकर आने लगे। इमानदारी का कब बाजारीकरण हो गया पता ही नहीं लगा ।

शहर के निठल्ले पड़े सड रहे अखबार वालों को भी ताजा मसाला मिल गया ।

इस इमानदार में एक खासियत थी, ये अकड़ू नहीं था। रीढ़ की हड्डी नहीं थी, बिल्कुल केंचुआ था। मामला यहाँ तक पहुँचा कि उसके घरवालों को भी लगने लगा, "चलो इसकी ऑटो चलाने की औकात से तो घर की रोजी-रोटी चल नहीं रही थी, अब कम से कम राजनीति में जाएगा तो कुछ तो काम आएगी इसकी इमानदारी।"

फिर राजनीतिक पार्टियां भी उसके घर के चक्कर लगाने लगीं। पार्टियों में होड़ मच गयी । इमानदार आदमी की चर्चा शहर से राज्य और फिर केंद्र तक तक पहुँची ।"ये तो हमारे पार्टी में होना चाहिए! ऐसे इमानदार की तो हमें जरूरत है।" उस इमानदार को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए, बोली लगाई जाने लगी । उसे पार्टी का ब्रांड एंबेसडर बनाया जाने का ऑफर । राजनीतिक पार्टियों को भी कुछ ऐसे इमानदार आदमी की तलाश थी । लंबे-चौड़े ऑफर आए और उसे चुनावी मंचों पर ले जाया जाने लगा। इमानदारी धीरे-धीरे महंगी हो गई, और वापस नेताओं की कोठियों में पलने लगी। कब इमानदारी नेताओं की कोठियों की रखैल बन गयी पता ही नहीं लगा ।

दरअसल, पार्टियां भी चाहती हैं कि बेइमानी की छवि को साफ किया जाए। चुनाव नजदीक हैं, तो कुछ इमानदार दूसरी पार्टी के नेताओं को भी उचित कीमत देकर खरीद लिया गया है । अपनी पार्टी के बेइमान दागियों को कुछ समय के लिए निकाल दिया गया है, ताकि जनता की शॉर्ट मेमोरी का फायदा उठाया जा सके। बेइमानी के दाग मिटाने के लिए जो तेल-साबुन का खर्चा है, वो भी बेइमानी से कमाई हुई दौलत से ही आता है।

बेइमानी ही इमानदारी की इमारत खड़ी करती है। संस्थाएं बनती हैं इमानदारी के लिए, फिर बेइमान हो जाती हैं। फिर संस्था अपना रेनोवेशन करा लेती है, नए तमगे और ब्रांड लोगो के साथ।

"हम बेइमान नहीं, हमारी संस्था बेदाग है।" नेता जी इमानदार हैं, ये तो विरोधी पार्टियों की चाल है, जो उन्हें बेइमान साबित करने पर तुली हुई हैं।‘ जब वे सत्ता में थे, तब वो भी इमानदार थे । सत्ता ऐसी वॉशिंग मशीन है, जिसमें आते ही सारी बेइमानी धुल जाती है। बेइमानी ऐसी साफ़ दिखती है कि हर कोई उसे पकड़ने को तैयार है। जैसे ई डी और सी बी आई वाले पीछे पड़े रहते हैं ।, हर कोई भौंकने को तैयार रहता है। गली का कुत्ता भी पीछे पड़ा रहता है। अब ये मुश्किल से अपनी जान बचा पाती है। जैसे बेईमानी नहीं हुई मोहल्ले की सविता भाभी हो गयी , जिसे हर कोई छेड़ता रहता है।

इमानदारी तो कहीं नज़र ही नहीं आती, ऐसे गायब है कि दिखाई ही नहीं देती। पकड़ेगा भी कौन? आखिर, जो दिखेगा नहीं, वो पकड़ा भी कैसे जाएगा!

नेता लोग हर जगह इमानदारी दिखाते हैं। वो कहते हैं, "इमानदारी दिखाने की चीज है, निभाने की नहीं," तो जैसे हाथी के दांत दिखाने के होते हैं, वैसे ही हमारे इमानदारी के दांतों पर जनता वोट छिड़कती है। बेइमानी के पैसों को हम हाथ नहीं लगाते, सीधे खाते में जाते हैं।

इमानदारी का डंका बजाने में, लोग अपनी बगल में दबी बेइमानी को छिपाने में माहिर हो गए हैं। इमानदारी के इस पुछल्ले से सीटें हड़पी जा रही हैं, वोट कबाड़े जा रहे हैं ।

आजकल इमानदारी एक ऐसा शेर बन गई है, जिसकी खाल ओढ़कर गधे भी मैदान में कूद पड़े हैं।

अगर सच पूछो तो इमानदारी सबसे ज़्यादा बेइमानों में ही मिलती है । बेइमान लूट की राशि में बंटवारे में पूरी इमानदारी बरतते है। कभी देखा है किसी बेइमान ने अपने साथी के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई हो कि उसने मेरे साथ बेइमानी कर ली?

इमानदारी ड्रामा क्वीन है ।निकलती है तो पूरी सज धज के,अकड से ,किसी को भाव नहीं देती । बेईमानी दबे पाँव निकलती है, चुपके से । इशारों इशारों में बात करती है । हर कोई इसके वश में हो लेता है ।इमानदारी की रिज़र्व सीट होती है, किसी को बैठने नहीं देती ,बेईमानी आर ए सी की वेटिंग की तरह ,सेटिंग और जुगाड़ करके सीट कबाड़ ही लेती है ।

लेखक डॉ. मुकेश 'असीमित ' गंगापुर सिटी, राजस्थान के निवासी एवं अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ है | उन्हें  लेखन कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं ,उपन्यास ,व्यंग्य कहानियां ,कथाकार नियमित रूप से रचनाएं ,देश विदेश की जानी मानी हिंदी पत्रिकाएं ,समाचार पात्र,साप्ताहिकी में प्रकाशित होती रहती हैं|
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