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बैठो मेरे पास!

बैठो मेरे पास!

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर) 
बैठो मेरे पास!
रोग-शोक- भय-संतापित संसार,
नहीं सूझता कोई भी उपचार,
कर्णकुण्ठकारी कोलाहल घोर,
बैठो मेरे पास!
घाव पुराने खोल रहे हैं लोग,
व्यर्थ मारने-मरने का दुर्योग,
मन्दिर-मस्जिद के विवाद का शोर,
बैठो मेरे पास !
राजनीति- नट खो कर जन-विश्वास,
पल पल रंग बदलते ज्यों कृकलास ,
घूम रहे हैं बाहर मर्दुमखोर ,
बैठो मेरे पास!
कंकरीट-जंगल पर नत आकाश,
क्षीब तस्करों का है जहाँ विलास,
झोपड़पट्टी में भूखों का रोर,
बैठो मेरे पास!
शैलों का उच्छेद, वनों का नाश,
छीन रहे नदियों का पावन प्राश,
कहर प्रकृति का टूट रहा पुरजोर,
बैठो मेरे पास!
(क्षीब =उन्मत्त)
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