तुम प्रेम पत्र में लिखी,सुंदर कविता सी हो
अंग प्रत्यंग किसलय,अंतःकरण हर्ष उमंग ।
संवाद पटल रस माधुर्य ,
निर्झर आनंद जीवन कंग ।
हाव भाव सौम्य वासंतिक,
आलोक पुंज सविता सी हो ।
तुम प्रेम पत्र में लिखी,सुंदर कविता सी हो ।।
स्वर मधुरिमा मनभावन,
जीवन उत्सविक अनुपमा ।
श्रृंगार अनुपम हिय प्रिय,
प्रीतम सम प्रणय रमा ।
रग रग तरूणाई दर्शन,
तृषा तृप्त गविता सी हो ।
तुम प्रेम पत्र में लिखी,सुंदर कविता सी हो ।।
ह्रदय बिंदु नेह सरोवर,
अभिव्यक्ति अंतर अपनत्व ।
शब्द सुरभि मैत्री ओतप्रोत,
चारु चंद्र सदृश प्रीत घनत्व ।
निशि वासर रमणीक प्रभा,
छवि ललित नविता सी हो।
तुम प्रेम पत्र में लिखी, सुंदर कविता सी हो ।।
अति सुरभित मन उपवन ,
विचार तरंगिनी अनुपम ।
चाल ढाल मोहक सोहक,
हाव भाव मंगल उत्तम ।
तन मन मंदिर सा पावन,
अनंत स्नेह सिक्त पविता सी हो।
तुम प्रेम पत्र में लिखी, सुंदर कविता सी हो ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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