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इस शहर में अब लाश और गिद्ध है बाक़ी |

इस शहर में अब लाश और गिद्ध है बाक़ी |

  • पुस्तक-चौदस मेले में डा विष्णु किशोर झा 'बेचन' की जयंती पर आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन, डा रत्नेश्वर सिंह की तीन पुस्तकों का हुआ लोकार्पण ।
पटना, ४ सितम्बर। "उठ गए हैं वो लोग, जो रहे कभी ज़िन्दा/ इस शहर में अब लाश और गिद्ध है बाक़ी",--“सृजन है अधूरा तुम्हारे बिना/ मिलन है अधूरा तुम्हारे बिना”----- । हृदय को छू लेने वाली इस तरह की पंक्तियाँ बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के मंच से सुनने को मिली। सम्मेलन में गत १ सितम्बर से आयोजित हिन्दी पखवारा और पुस्तक चौदस मेला के चौथे दिन स्मृति-शेष साहित्यकार डा विष्णु किशोर झा 'बेचन' की जयंती पर कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र 'करुणेश' ने बागवानों की पीड़ा की अभिव्यक्ति इन पंक्तियों में की कि - “बाग फूला बहुत फला शायद/ बागवां तो मगर चला शायद/ वक़्ते-रूखसत वो कुछ न कहा पाया/ रूँध गया था लगा गला शायद।"
डा रत्नेश्वर सिंह ने अपनी भावना को ये शब्द दिए कि- “सृजन है अधूरा तुम्हारे बिना/ मिलन है अधूरा तुम्हारे बिना/ मिटेगा ये कैसे जग का अंधेरा / जीवन है अधूरा तुम्हारे बिना"। कवयित्री सुनीता रंजन ने ऋंगार की ये पंक्तियाँ पढ़ी कि - “आपसे यूं ही मिलती रहूँगी/ आशाओं की कलियाँ चुनती रहूँगी/ खिलते फूलों की मासूम पंखुड़ियाँ / चूम-चूमकर विहँसती रहूँगी।"
अपने अध्यक्षीय काव्य-पाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने जीवन में आशाओं को जीवित रखने और सच के पक्ष में ज़िद ठानने का उपदेश देते हुए कहा कि "तड़प है कि तलब है, कि ज़िद है बाक़ी/ यह दिल भी धड़कता है कि उम्मीद है बाक़ी"। अगले शेर में उन्होंने आज की इंसानी फ़ितरत की ओर इशारा करते हुए कहा कि - “उठ गए हैं वो लोग जो रहे कभी ज़िन्दा/ इस शहर में अब लाश और गिद्ध है बाक़ी।"
वरिष्ठ कवि प्रो सुनील कुमार उपाध्याय, डा सुषमा कुमारी, संध्या साक्षी, बाँके बिहारी साव, भास्कर त्रिपाठी आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी कविताओं से श्रोताओं की ख़ूब तालियाँ बटोरीं। चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना प्रस्तुत किया।
इसके पूर्व जयंती पर सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष डा विष्णु किशोर झा बेचन का स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि बेचन जी का साहित्य भी उनके सुदर्शन व्यक्तित्व की भाँति प्रभावशाली और वंदनीय है। आलोचना-साहित्य को सरस बनाने में उनकी लेखनी ने चमत्कार उत्पन्न किया।
बिहार लोक सेवा आयोग के अवकाश प्राप्त संयुक्त सचिव और डा बेचन के पुत्र डा मनोज कुमार झा ने अपने पिता के सारस्वत जीवन के विविध आयामों की चर्चा करते हुए, उन्हें एक आदर्श पुरुष बताया। उन्होंने कहा कि बेचन जी साहित्यिक मंचों की शोभा थे। सभी बड़े कवि-सम्मेलनों के वे अनिवार्य हिस्सा हुआ करते थे। उनकी रचनाओं का संकलन अनेक खंडों में 'बेचन-समग्र' के रूप में प्रकाशन भी किया जा रहा। इसके दो खंड प्रकाशित हो चुके हैं और दोनों का लोकार्पण साहित्य सम्मेलन में ही हुआ।
इस अवसर पर कवि डा रत्नेश्वर सिंह की तीन पुस्तकों “कल्पना के पंख”, “आध्यात्मिक और वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य” तथा “संघर्ष का पर्याय शकुंतला तोमर” का लोकार्पण भी किया गया। मंच का संचालन कवि ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।पुस्तक मेले में आज भी पाठकों की भींड़ रही। पुस्तक-प्रेमियों ने 'राष्ट्रीय पुस्तक न्यास' और सम्मेलन के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की भी प्रचूर ख़रीद की। हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवियों और साहित्यकरों की ही नहीं, नयी पीढ़ी के कवियों की पुस्तकें भी मेले में बिक रही है।
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