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अनमोल रिश्ता

अनमोल रिश्ता

रिश्ते तो अनमोल ही होते हैं , जो मानव वर्ग में ही पाए जाते हैं और मानव को एक इंसान बनाने में इसकी महद भूमिका होती है , जिसे हम इंसानी रिश्ते भी कह सकते हैं ।
वैसे मानव भी पूर्व में अतीप्राचीन काल में पशु सदृश ही था , किंतु जंगली पशु जब इन्हें अपनी ग्रास बनाने लगे तब इन्हें महसूस हुआ कि हमें अपनी सुरक्षा के विषय में सोचनी चाहिए और वे स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए समूह में रहना या तरह तरह के उपाय सोचने लगे । सुरक्षा का उपाय तो उन्होंने कर लिया किंतु व्यवहार उनका पशुवत ही था । अर्थात उस समय किसी भी रिश्ते का नाम ओ निशाॅं ही नहीं था । तब वे आदिमानव कहे जाते थे ।
तब समय भी यों ही गुजरता गया , मानव की आबादी भी बढ़ती ही गई । उन्हीं बढ़ती हुई आबादी में कोई बुद्धिमान निकला होगा , जिसे इस पशुवत व्यवहार से बहुत ग्लानि हुई होगी । फिर उसने पर्दे का आड़ लिया होगा तथा मानव जीवन को पावन बनाने हेतु इन पावन रिश्ते का नवनिर्माण किया होगा एवं उसे धरातल पर उतारा होगा ।
संभवतः उन्होंने गहन चिंतन भी किया हो , क्योंकि मनु के वंशज होने के कारण ही हमें मनुष्य नाम मिला है , जिसका सहजता व सरलता के लिए हमें मानव नाम भी शायद शामिल किया गया हो या आदिमानव के पशुत्व जीवन को समाप्त करने के लिए हमें मानव नाम दिया गया है , क्योंकि मानव शब्द दो शब्दों के संयोग से बना है जो हमारे पावन रिश्ते को और भी सुदृढ़ बनाता है । मा का अर्थ होता है मुझे , और नव का अर्थ है झुकाओ । अर्थात सप्रेम या सद्व्यवहार या उपकार के द्वारा झुकने और झुकाने की प्रक्रिया अपनाने वाले को ही मानव कहते हैं । अर्थात इस जीवन के तन को मानव और इस तन के द्वारा अपनाए गए प्रेम , व्यवहार , उपकार और दया रूपी कर्म को मानवता कहते हैं । जहाॅं मानव का दूसरा नाम इंसान है , वहीं मानवता का दूसरा नाम इंसानियत है ।
यही मानवता अर्थात इंसानियत अनमोल रिश्ते को सुदृढ़ बनाने में महद भूमिका प्रदान करता है ।
यों तो अति प्राचीन काल में इंसानियत का तो कोई नाम ही नहीं था , किंतु आधुनिक समय में मानवता या इंसानियत वृहद रूप में है जबकि अतिप्राचीन काल में आदिमानवों का व्यवहार जो पशुवत था , वह आज भी विराजमान है । यदि बदला है तो सिर्फ नाम जो पहले अज्ञानता के कारण उन्हें आदिमानव कहा गया , जबकि आज ज्ञान रहते हुए भी जो पशुवत व्यवहार करते हैं , उन्हें हैवान कहा जाता है । अर्थात आदिमानवों में अज्ञानता के कारण रिश्ते ही नहीं थे , किंतु आज अनमोल रिश्ते हैं तो हैवानों के पास उसका मोल नहीं ।
यही मानवता हमें पावनता देता है और यही पावनता हमें यह अनमोल रिश्ते प्रदान करता है ।
जय हिन्द ! जय भारत !!
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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