अहंकार का अंधेरा, सहयोग का प्रकाश

अहंकार का अंधेरा, सहयोग का प्रकाश

नाराज़ ना होना कभी यह सोचकर क़ि..
काम मेरा, नाम किसी और का हो रहा है।

सदियों से जलते तो "घी" और "बाती" हैं,
पर लोग कहते हैं कि "दीपक" जल रहा है।

"आइये पहचान की
नुमाईश जरा कम करें,
जहाँ भी "मैं" लिखा है,
उसे "हम" करें....!!

उपरोक्त पंक्तियाँ एक गहरी अंतर्दृष्टि रखती हैं जो हमें समाज और व्यक्तिगत जीवन दोनों में व्याप्त एक महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर इंगित करती हैं। ये पंक्तियाँ हमें याद दिलाती हैं कि अक्सर हम अपनी उपलब्धियों का श्रेय लेने में इतने अंधे हो जाते हैं कि हम भूल जाते हैं कि हम इस सफलता के लिए अकेले जिम्मेदार नहीं हैं।

"काम मेरा और नाम किसी और का हो रहा है" यह भावना अक्सर तब पैदा होती है जब हम किसी टीम में काम करते हैं या किसी संगठन का हिस्सा होते हैं। हम अपनी मेहनत और योगदान को कम आंकते हैं और दूसरों को अधिक श्रेय देते हैं। यह भावना न केवल हमें निराश करती है बल्कि टीम वर्क को भी कमजोर करती है।

कविता में दीपक की उपमा देकर कवि एक महत्वपूर्ण बात बता रहे हैं। दीपक जलने के लिए घी और बाती दोनों की जरूरत होती है। अगर हम केवल घी या बाती को ही महत्वपूर्ण मानें तो दीपक कभी नहीं जल पाएगा। इसी तरह, किसी भी सफलता के लिए व्यक्तिगत प्रयासों के साथ-साथ टीम वर्क और सहयोग का होना भी जरूरी है।

"आइये पहचान की नुमाईश जरा कम करें, जहाँ भी 'मैं' लिखा है, उसे 'हम' करें" ये पंक्तियाँ हमें एकता और सहयोग का संदेश देती हैं। जब हम "मैं" के बजाय "हम" पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो हम एक टीम के रूप में काम करते हैं और एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। इससे न केवल व्यक्तिगत विकास होता है बल्कि समाज का भी विकास होता है।

. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार) 
 पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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