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मानवता कमजोर पडी तो, दानवता बढ जायेगी,

मानवता कमजोर पडी तो, दानवता बढ जायेगी,

दया- धर्म का साथ न होगा, मानवता मर जायेगी।

परोपकारी हो अपना जीवन, धर्म यही बन जायेगा,
परहित कुछ कर न सके, जीवन व्यर्थ ही जायेगा।
निज स्वार्थ में पशु भी जीते, भेद यही मानव में है,
सदबुद्धि अपनायी तो, दानव भी मानव बन जायेगा।
प्रकृति से बढा कर दूरी, जहर हवा पानी में घोले,
भौतिकता अपनायेंगे तो, अध्यात्म भाव मिट जायेगा।
राष्ट्र रहेगा जनता होगी, भारत की पहचान न होगी,
करूणा भाव नही रहा, मानव पत्थर सा हो जायेगा।
धरती- पर्वत, चाँद- सितारे, दूर गगन में सूरज होगा,
मानवता गर नही रही तो, सनातन ही मिट जायेगा।

अ कीर्ति वर्धन
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