द्रौपदी ( एक आईना )
समय होता बलवान जगत में ,समय से बड़ा न कोई बलवान ।
समय के आगे सब हैं झुकते ,
वैज्ञानिक विद्वान या पहलवान ।।
सुख में जन जन होते हैं अपने ,
दुःख में होते हैं अपने पहचान ।
सुख में सारे आगे पीछे हैं होते ,
दुःख में सारे उल्टे पैर से पयान ।।
सारे अपने ही बैठे थे सभा में ,
जब द्रौपदी ही रही थी निर्वस्त्र ।
पाॅंचो पति भी उस सभा में बैठे ,
कृष्ण को उठाना पड़ा ये शस्त्र ।।
दुशासन बालि की भीड़ लगी है ,
द्रौपदी बन गई है एक आईना ।
बहनों बेटियों हथियार उठाओ ,
समझ लो तेरा कोई है भाई ना ।।
अपनी बचाव तुम्हें स्वयं करना ,
उस मार्ग को तुम प्रशस्त करो ।
जो भी बाधा तेरे मार्ग में आए ,
उसका सूर्य तुम ये अस्त करो ।।
सभ्यता संस्कृति न निज खोना ,
आधुनिक फैशन एक निंदा है ।
बढ़ती रहो तुम मार्ग पर अपने ,
अभी तेरे भाई कृष्ण जिंदा है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com