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सुलझा पायेगा

सुलझा पायेगा

वो कुछ इस तरह कह गये
मैं आज तक सोच रहा हूँ।
उनके शब्दो का हल मैं
अब तक खोज रहा हूँ।
न ही वो मिले दुवारा मुझे
न ही उनके शब्दो का अर्थ।
इसलिए जिंदगी आज तक
मेरी उलझी पड़ी है।।


सवालों के जवाब मिलते जाये
तो जिंदगी दौड़ने लगती है।
यदि कही उलझ जाये तो
जिंदगी भी रुक जाती है।
और नये सवालों को
जन्म दे देती है।
जिनको हल करने में
हम आप लगे रहते है।।


मन बहुत चंचल होता है
अवश्यकताओं का अंत नहीं है।
इसी चक्र में इंसान हमेशा
उलझा उलझा सा रहता है।
और अपने आप में ही
खोया खोया सा रहता है।
न खुद सुखी रहता है और
न घर वालों को रहने देता है।।


यदि कर सको तुम
अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण।
तो जीवन सरल और सहज
तुम्हारा बन जायेगा।
आत्म कल्याण का भाव भी
मन के अंदर आयेगा।
और उलझी हुई जिंदगी को
खुद ही सुलझा लोगें।


जय जिनेंद्र 
संजय जैन "बीना" मुंबई
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