नदी का जन्म दिन
ज्योतींद्र मिश्रनदी के अवतरित होते ही
बनते गए दो किनारे
झांकने लगे सूरज ,
चांद और सितारे
बहती रही नदी अविराम ।
बगुलों ने नदी की कोख से
चुराई मछलियां
आदमी ने उठा लिया रेत
प्यासा पनघट अब तक
निहार रहा है अविश्रांत
नदी का पुनर्जन्म कब होगा
कब लौटेगी नदी
कब तक ?
हम तुम्हारा जन्म दिन मनाएंगे
कब लौटोगी नदी ?
@ ज्योतींद्र मिश्र
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