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मन कतहुँ लागत नइखे।

मन कतहुँ लागत नइखे।

दिल के बोझ भागत नइखे।।
गाँव छोड़ के शहर में अइनीं।
पैसा खातिर गाँव भुल‌इनीं।।
पैसा कतना सुख दिहलस।
नाता गोता छिन लेहलस।।
शहर में केहू आपन ना भ‌इल।
आपन रहे से छिन ग‌इल।।
समझ ना आवे कहाँ ब‌इठीं।
रूपया ले के कतना अइठीं।।
शहरी लोग एक दम स्वछंद बा।
सब कर दरवाजा भीतर से बंद बा।।
दुख पड़ला पर कतनो चिल‌इब।
केहू के तूं पास ना प‌इब।।
गाँव के लोग बुरबक होला।
रास्ता चलत हाल चाल पुछेला।।
दुख में एक बार हांक लग‌इब।
दश बीस लोग पास में प‌इब।।
जे सुनी से दौड़ल आई।
उहां आपन बिराना सबे भाई।।
गाँव में केहू के बोलावे के ना परी।
प‌इसा ना बा लेकिन देह से सब करी।।
इहे फरक गाँव वो शहर में बुझाता।
शहरी भाईचारा देख मन पछताता।। 
 जय प्रकाश कुवंर
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