Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

शरीर के दश द्वार

शरीर के दश द्वार

जय प्रकाश कुवंर
हमारे शरीर को एक अस्थायी घर माना जा सकता है, जिसमें हमारा प्राण यानि आत्मा का निवास है। इस शरीर रूपी घर में दश द्वार हैं। ये द्वार हैं :-
दो आंख, दो कान, दो नासिका, एक मुंह, एक मूत्र मार्ग, एक मलद्वार और एक सिर का मध्य भाग। दशम द्वार की सिख संप्रदाय में बहुत मान्यता है और दशों द्वारों में इस दशम द्वार को सबसे अहम माना जाता है। इसे ब्रह्मरंध्र शिखा अथवा सहस्त्राद चक्र भी कहा जाता है। यह स्थान हमारे सिर के बीचों बीच होता है।
हमारे शरीर से मरने के समय हमारी आत्मा अथवा प्राण इन दश द्वारों में से , हमारे कर्मों के अनुसार, किसी भी एक द्वार से निकल जाती है, परंतु हमारे जन्म के समय माता के गर्भ में शिशु के शरीर में आत्मा अथवा प्राण इस दशम द्वार से ही प्रवेश करता है। माता के गर्भ से बाहर आने के बाद किसी भी नवजात शिशु के सिर के मध्य भाग में हाथ रख कर इस दशम द्वार को अनुभव किया जा सकता है। उस समय यह अत्यंत कोमल होता है। तदोपरांत बच्चे के बढ़ने के साथ यह सिर का मध्य भाग आहिस्ता आहिस्ता कठोर होता जाता है।
इस दशम द्वार का संबंध सीधे मन से होता है। इससे हम परमात्मा से साक्षात्कार कर सकते हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी कारण नवजात शिशु को भगवान् का स्वरूप कहते हैं। मन को नियंत्रित रखने के लिए दशम द्वार यानि सिर को ढंक कर रखा जाता है। और यही कारण है कि स्त्री और पुरुष सबको सिर को ढक कर रखना आवश्यक होता है।
सिर को ढंक कर रखने से भगवान् के प्रति हमारा जो सम्मान और समर्पण है, उसकी अभिव्यक्ति होती है। खासकर पूजा आदि के समय सिर को ढंकना मन को भगवान् के सामने नियंत्रित रखने के लिए आवश्यक होता है।
दशम द्वार यानि सिर को ढंक कर रखने का वैज्ञानिक कारण भी है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों बीच होता है और रोग फैलाने वाले किटाणु सिर ढंका न होने के कारण सिर के बालों में चिपक कर शरीर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं।
अब जब हमारा शरीर प्राण त्याग करता है, उस समय आत्मा अथवा प्राण हमारे कर्मों के अनुसार शरीर के इन दश द्वारों में से किसी एक द्वार से निकल जाती है। अगर प्राण आंखों के
द्वार से निकलता है तो आंखे उलट जाती हैं। अगर नाक अथवा मुंह के रास्ते प्राण निकलता है तो वो टेढ़ा हो जाते हैं। अगर प्राण उत्सर्जन मार्ग यानि मूत्र या मलद्वार से निकलता है तो मल मूत्र निकल जाता है।
इन सब में नाक तथा मुंह द्वार से प्राण का निकलना शुभ माना जाता है। अगर किसी का प्राण दशम द्वार से होकर शरीर त्याग करता है, तो उसे अति उत्तम माना जाता है। ऐसी अवस्था में जीव जीवनमुक्त हो जाता है और उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। इस दशम द्वार से निकले प्राण अथवा आत्मा की पुनः ईश्वर से साक्षात्कार हो जाती है। ईश्वर ने ही उसे शरीर रूपी अस्थायी घर में उस दशम द्वार से प्रवेश कराया था और उसी मार्ग से पुनः निकल कर वह ईश्वर में विलीन हो गया। 
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ