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बालि वध

बालि वध

जय प्रकाश कुवंर
श्रीरामचरितमानस के किष्किन्धा कांड में एक प्रसंग आया है, जिसमें संत तुलसीदास जी ने लिखा है कि भगवान श्री राम के वनवास की अवधि में बानरराज सुग्रीव से मित्रता होने के बाद सुग्रीव की उसके बड़े भाई बालि से द्वंद युद्ध होता है और जब बालि के कठोर गदा प्रहार से सुग्रीव बुरी तरह घायल और विचलित होकर हारने लगता है, तब भगवान राम वृक्ष के ओट में खड़े होकर अपने बाणों से बालि का वध कर देते हैं। जिस पर बालि भगवान राम को कोसता है और उनपर आरोप लगाते हुए कहता है कि :-
धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं।
मारेहु मोहि ब्याध की नाईं।।
मैं बैरी सुग्रीव पिआरा ।
अवगुन कवन नाथ मोहि मारा।।
आइए आज इस प्रसंग पर चर्चा करते हैं और जानकारी प्राप्त करते हैं कि आखिर बालि और सुग्रीव कौन थे और किस कारण से भगवान राम को बालि का वध करना पड़ा। प्रत्यक्ष रूप से तो यही दिखाई पड़ता है कि भगवान् श्री राम को वनवास की अवधि में सुग्रीव से मित्रता हुई और माता सीता की खोज में अपने मित्र सुग्रीव से मदद लेने हेतु उन्होंने सुग्रीव के बड़े भाई और दुश्मन बालि का वध सुग्रीव के कहने पर कर दिया। परंतु इसके अलावा इसके पीछे जो असली कारण है और धर्म पक्ष है, वह इस प्रकार है।
बालि और सुग्रीव दोनों भाई थे। उनकी माता का नाम ऋक्षराज था। बड़े बेटे बालि के धर्म पिता इन्द्रदेव थे और छोटे बेटे सुग्रीव के धर्म पिता सूर्य देव थे। बड़ा बेटा बालि किष्किन्धा नगरी का राजा था। समय के अंतराल में एक मायावी राक्षस के वध के क्रम में दोनों भाई एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे और थोड़ी अवधि के लिए राजा बन बैठे सुग्रीव के हाथों से पुनः बालि ने किष्किन्धा का राज सुग्रीव से छीन लिया और उसे अपने राज्य से निष्कासित कर दिया तथा सुग्रीव की पत्नी को भी उससे छीन लिया। अब सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि का पक्का दुश्मन हो गया और उससे छुपकर अलग ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगा, जहाँ बालि किसी पुर्व श्राप वश नहीं जा सकता था।
इधर एक कहानी है कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हमारे त्रिदेवों में ब्रह्मा जी को जन्मदाता, विष्णु जी को पालनकर्ता और शिव जी को संघारकर्ता माना जाता है। युगों युगों से ऐसा देखने को मिलता है कि मानव, राक्षस या अन्य किसी जीव ने अपनी तपस्या के बल पर भगवान शिव तथा ब्रह्मा जी से कुछ ऐसे ऐसे वरदान प्राप्त कर लिए, जो उन्हें घमंडी, आततायी और धर्म विरूद्ध आचरण कर के जगत के लिए दुखदायी बना दिया। उनके धर्म विरूद्ध आचरण से जब मानव और साधु संत परेशान होने लगे तथा उनकी इस प्रवृत्ति को रोकने में स्वंय ब्रह्मा जी और शिव जी भी विफल रहे, तब भगवान विष्णु जी को किसी न किसी रूप में पृथ्वी पर आना पड़ा और उनका संघार करना पड़ा।
जब जब होई धरम की हानि।
बाढ़हि असुर अधम अभिमानी।।
तब तब धरि प्रभु विविध शरीरा।
हरहिं दयानिधि सज्जन पीरा।।
इस प्रकरण का पात्र इन्द्र देव का पुत्र बालि भी अपने जन्म के समय से ही वरदान स्वरूप अपने पिता से एक सफेद रंग का माला प्राप्त किए हुए था । तत्पश्चात उसने अपनी भक्ति और आराधना से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे यह वरदान प्राप्त किया कि युद्ध में जब भी कोई उससे लड़ेगा, तो विरोधी दुश्मन की आधी शक्ति उसे प्राप्त हो जाएगी। इस वरदान के चलते बालि अजेय हो गया और घमंड में डुबकर अनैतिक और धर्म विरूद्ध कार्य करने लगा। अब लड़ते समय विरोधी की आधी शक्ति पाकर वह और भी शक्तिशाली हो जाता था और उसे कोई भी हरा नहीं पाता था।
इधर उसने अपने छोटे भाई सुग्रीव को अपने राज्य तथा घर से खदेड़ दिया था और उससे उसकी पत्नी को भी छीन कर अपने साथ अनैतिक रूप से रख लिया था। जब सुग्रीव की भगवान् राम से मित्रता हुई तब उन्होंने सारी बातें भगवान् राम को बताई। जिस पर भगवान् राम ने उनको धर्म विरूद्ध आचरण करने वाले बालि के विरुद्ध लड़ाई में सुग्रीव की मदद करने का आस्वासन दियादिया , और उसे मारने को कहा।
जब लड़ाई के लिए सुग्रीव द्वारा ललकारने पर बालि दौड़ पड़ा तब उसकी पत्नी तारा ने उसे पैर पकड़ कर नहीं जाने को कहा और बताया कि सुग्रीव की जिनसे मित्रता है वो अत्यंत बलशाली है और युद्ध में काल को भी जीत सकते हैं। उनसे बैर करना उचित नहीं है । फिर भी बालि पत्नी की बात नहीं माना और सुग्रीव के साथ युद्ध के लिए दौड़ पड़ा।
जब दोनों भाई की लड़ाई जारी थी और वरदान के चलते सुग्रीव की आधी शक्ति उसे मिल जा रही थी, तो वह स्वाभाविक रूप से उस पर प्रहार किए जा रहा था और उसे मार डालने के लिए आतुर था। ऐसे समय में भगवान् राम का भी उसे ब्रह्मा जी से प्राप्त वरदान के चलते उसके सामने न आकर वृक्ष की ओट से बाण चलाकर वध करना पड़ा।
अब जब भगवान् श्री राम जी का वाण उसके हृदय में लग गया है तब वह भगवान् को पहचान गया है और मरते समय वह भगवान् राम से वह पुछता है कि हे प्रभु आप तो धर्म की स्थापना हेतु अवतरित हुए हैं, फिर आपने हमें बहेलिये के जैसे क्यों मारा। मैं भला आपका बैरी कैसे हो गया और सुग्रीव आपका प्यारा कैसे हो गया। इस पर भगवान् श्री राम उसे बतलाते हैं कि,
अनुज बधू भगिनी सुत नारी।
सुनु सठ कन्या सम ए चारी।।
इन्हहिं कुद्रिष्टी बिलोक‌ई जोई।
ताहि बधे कछु पाप न होई।
मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना।
नारी सिखावन करसि न काना।।
मम भुज आश्रित तेहि जानी।
मारा चहसि अधम अभिमानी।।
इस प्रकार उपरोक्त पंक्तियों में भगवान् श्री राम ने उसे यह समझा दिया कि क्यों वह दोषी है और वध करने के योग्य है। इसमें तुमनें अपने छोटे भाई की पत्नी, जो तुम्हारे कन्या की तरह है, उस पर कुदृष्टि डाली है। तुम्हें अपने बल का अत्यंत अभिमान है , और इसलिए तुमने अपनी पत्नी की बातें नहीं मानी, जिसने तुम्हें यह बैर और लड़ाई करने से मना किया था। अपने पत्नी के पहचान जाने पर भी कि मैं कौन हूँ और सुग्रीव मेरे भुजाओं के तहत आश्रित है, फिर भी तुमने उसकी बात नहीं मानी और ऐ अधम और अभिमानी बालि, तुमने सुग्रीव को मारना चाहा। तुम्हारा वध करने के लिए क्या ये तुम्हारे अपराध कम हैं।
इस पर बालि प्रभु श्री राम के सामने कहता है कि हे प्रभु आप हमारे स्वामी हैं और अपने स्वामी के सामने मेरी कोई चतुराई चल नहीं पाएगी। मैं पापी हूँ, लेकिन मेरा अंत अपने प्रभु के सामने हो रहा है, इससे बड़ा और क्या हो सकता है।
सुनहु राम स्वामी सन,
चली न चातुरी मोरि।
प्रभु अजहूं मैं पापी,
अंतकाल गति तोरि।
भगवान् श्री राम बालि की आरत वाणी को सुनकर द्रवित हो गये और उसे जिन्दा रहने के लिए बोले। इस पर वह बोला कि हे प्रभु लाख यत्न करने पर भी अंत समय में जिसे आपका नाम नहीं उसके मुंह से आता है वो हमारे प्रभु हमारे आंखों के सामने हमारे अंत समय में हैं, फिर यह प्राण किस लिए रखना है। ऐसा कहकर वह भगवान् राम के सामने प्राण त्याग देता है।
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