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तृप्त हों सब तृप्त हों सब तृप्त हों~~

तृप्त हों सब तृप्त हों सब तृप्त हों~~

मेरे तर्पित जल से सारे तृप्त हों।
तृप्त ब्रह्मा तृप्त विष्णु रुद्र हों
प्रजापति और देव सारे तृप्त हो
छंद तृप्त हों वेद तृप्त हों ऋषि मुनि सब तृप्त हों
पुराणों के आचार्य सारे तृप्त हों
तृप्त हों गंधर्व इतर आचार्य सारे तृप्त हों
अंग सहित संवत्सर तृप्त हों
देवियां सब तृप्त हों और अप्सराएं तृप्त हों
अनुगामी देवताओं के सकल भी तृप्त हों
नाग तृप्त समुद्र तृप्त सारे पर्वत तृप्त हों
नदियां सारी तृप्त हों व मनुष्य सारे तृप्त हों
यक्ष रक्षक तृप्त हों व पिशाच सारे तृप्त हों
पेड़ पौधे तृप्त हों व पंचभूत भी तृप्त हों
पशु पक्षी तृप्त हों सारी वनस्पति तृप्त हों
औषधि सारे जगत की जो जहां सब तृप्त हों
मरीचि तृप्त हों अत्रि तृप्त हों अंगिरा भी तृप्त हों
पुलह और पुलस्त्य तृप्त हों क्रतु वसिष्ठ भी तृप्त हों
प्रचेता भृगु और देवर्षि भी नारद तृप्त हों
सनक तृप्त सनन्दन व सनातन भी तृप्त हों
कपिल आसुरि वोढु पंचशिख दिव्य मानव तृप्त हों
कव्यवाडनल सोम यम और अर्यमा भी तृप्त हों
अग्निष्वाता सोमपा और बर्हिषद भी तृप्त हों
यम हों तृप्त धर्मराज तृप्त हों मृत्यु अंतक तृप्त हों
वैवस्वत काल सर्वभूतक्षय भी तृप्त हों
औदुम्बर दध्न नील व परमेष्ठिन तृप्त हों
वृकोदर हों तृप्त चित्र व चित्रगुप्त भी तृप्त हों।
वसुरुप पिता की तृप्ति के लिए ये सतिल जल
रूद्र रूप मेरे पितामह के लिए यह सतिल जल
प्रपितामह सूर्य रूप को भी मिले यह सतिल जल
चाचा मामा फूफा नाना के लिए यह सतिल जल
श्वसुर चाचा श्वसुर वृद्ध श्वसुर को यह सतिल जल
भाई बंधु जो दिवंगत उनके लिए यह सतिल जल
सरस्वती की जैसी माता के लिए यह सतिल जल
सावित्री जैसी दादी के लिए यह सतिल जल
गायत्री जैसी परदादी के लिए यह सतिल जल
चाची मामी फूआ नानी भगिनी को यह सतिल जल
सासु माता वृद्धा सासु माता के लिए सतिल जल
पुत्र पुत्री जो दिवंगत उनके लिए यह सतिल जल
देव दानव यक्ष नाग गंधर्व राक्षस को ये जल
पिशाच गुह्यक सिद्ध और कुष्मांड तरु खग को ये जल
थलचरों और जलचरों और नभचरों को भी मिले जल
नरक में जो यातना पा रहे उनको भी ये जल
बन्धु थे इस जन्म के जो अन्य जन्म में जो रहे
वे भी पाएं तृप्त होवें पाके मेरे दिए जल
मेरे कुल में जिनको भी न मिल सका कोई पिंड हो
वे भी पाएं मेरे हाथों दिया ये है सतिल जल
सप्तद्वीपों के निवासी जो रहे हों अब तलक
सब मेरे हाथों से पाएं आज तो ये सतिल जल
मेरे कुल में बिना पुत्र के आज तक जो भी मरे
उनको भी मैं दे रहा हूं वस्त्र निष्पीडन का जल
भीष्म जैसे वीर सत्यवादी जितेन्द्रिय को भी जल
भूलवश को कोई छूट गए तो वे भी स्वीकारें ये जल
यथा शक्ति देव ऋषि मनुष्य पितरों के लिए
मैंने जो तर्पण किया उससे सभी संतुष्ट हों
न्यूनता कुछ रह गई तो प्रभु कृपा से पूर्ण हो
मेरे तर्पण कर्म से पितृ जनार्दन तुष्ट हों।
 -स्वरचित रचना
(सुशील कुमार मिश्र)
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