दुःखी मां
यह सोच बड़े नाजों से पाली थी तुम्हें,कि बढ़ा होकर बुढ़ापे का सहारा बनेगा।
मेरी सारी परेशानियों को मिटाकर,
मुसीबतों से मुझे छुटकारा दिलाएगा।
मातृ-पितृ भक्त श्रवण की तरह,
कंधे पर डालकर तीर्थ यात्रा कराएगा।
लेकिन यह कहाँ जानती थी कि,
बड़ा होकर मेरी परेशानियों को बढ़ाएगा।
मेरी सेवा करने के बदले तू,
अपनी सेवा मुझसे कराएगा।
बुढ़ापे में भी बाजार से,
राशन और सब्जियां मंगवाएगा।
बात-बात पर यूँ नखरे दिखा,
पत्नी व बच्चों की सेवा मुझसे करवाएगा।
पहले पता होता मुझे तो,
ना करती तेरा लालन-पालन।
घोंट ममता का गला मैं,
यूं ही छोड़ देती मरने को।
क्यूं कष्ट सहकर पालती तुम्हें,
क्यूं जागती सारी - सारी रात।
ऐसा जानती पहले अगर तो,
ना देती कभी जन्म तुम्हें।
ऐसे औलाद से तो अच्छा है,
बिन औलाद की जिन्दगी जिए।
⇒ सुरेन्द्र कुमार रंजन
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